मध्य प्रदेश में चाहे कोई जीते लेकिन अंतिम हंसी तो बसपा और सपा ही हंसेंगे…

मध्य प्रदेश में चाहे कोई जीते लेकिन अंतिम हंसी तो बसपा और सपा ही हंसेंगे…

मध्य प्रदेश विधान सभा चुनाव हेतु प्रत्यक्ष प्रचार आज बंद हो गए. दो दिन बाद वोटिंग होगी. दर्जन भर से अधिक पार्टियों और हजार से अधिक प्रत्याशियों की किस्मत ईवीएम में बंद हो जाएगी. इस चुनाव में देश की दो बड़ी पार्टियांभाजपा और कांग्रेस के साथ उत्तर प्रदेश की दो बड़ी पार्टियां सपा और बसपा भी मैदान में हैं.

सपा व बसपा प्रथमदृष्टया भले ही सीधे तौर पर सरकार बनाने की दावेदार न नजर आ रही हों लेकिन ऐसा दिखता है कि अगली सरकार बनने में ये बड़ी भूमिका अदा कर सकती हैं. मध्य प्रदेश की जनता भले ही पूर्व में भाजपा या कांग्रेस को अपनी कमान थमाती रही हो लेकिन इस बार सत्ता की चाभी सपा व बसपा के हाथ लग सकती है. मध्य प्रदेश घूमते इसके स्पष्ट संकेत नजर आते हैं.

समाजवादी पार्टी के बैनर तले सत्यव्रत चतुर्वेदी के पुत्र और भाई दोनों चुनाव लड़ रहे हैं

अखिलेश के पत्ते

मध्य प्रदेश का सियासी रण देखते हुए एक बात तो स्पष्ट हो गई कि सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने अपने पत्ते बड़े कायदे से खेले हैं. वे भाजपा और कांग्रेस के बागियों को पकड़ने में सफल रहे हैं. हमसे बातचीत में आम आदमी पार्टी के एक सक्रिय कार्यकर्ता भी इस बात की पुष्टि करते हैं. चाहे सीधी में अर्जुन सिंह के घराने के भंवर साहब को पकड़ना हो या फिर छतरपुर में सत्यव्रत चतुर्वेदी के पुत्र व भाई नितिन और आलोक को पकड़ना हो.
चाहे बिजावर में बब्लू शुक्ला को पकड़ना हो या फिर निवाड़ी में झांसी से लाकर दीपक मीरा यादव को लड़वाना हो. अखिलेश ने बड़ी समझदारी से अपने पत्ते खेले हैं. ऐसा लगता है जैसे उन्होंने खुद ही बागियों से बात की हो. सीधी विधान सभा से सपा प्रत्याशी के.के. सिंह उर्फ भंवर साहब इस बात की पुष्टि भी करते हैं. अखिलेश चुनाव से पहले भी विन्ध्य और बुंदेलखंड के इलाके में पार्टी की कई बैठकें ले चुके हैं. जाहिर है वे इससे वोटों की फसल भी काटेंगे.

बिजावर में सपा प्रत्याशी के लिए प्रचार करता एक शख्स

मायावती भी पीछे नहीं

बसपा सुप्रीमो मायावती भी अपने चुनावी मैनेजमेंट के दम पर भाजपा और कांग्रेस को चेकबैलेंस रखने की स्थिति में हैं. रीवा जिले के देव तालाब विधान सभा से सीमा जयवीर सिंह और मऊगंज से मृगेन्द्र सिंह सेंगर को टिकट देकर चुनावी रण को दिलचस्प बना दिया है. गौरतलब है कि मालवा के इलाके और उत्तर प्रदेश से सटे इलाकों में बसपा स्पष्ट तौर पर भाजपा और कांग्रेस का सियासी गणित बिगाड़ने की क्षमता रखती हैं.

अखिलेश तो इस बात को कई बार मंचों से और मंचों से इतर भी कह चुके हैं कि कांग्रेस को सपा और बसपा को साथ लेकर चुनाव लड़ना चाहिए था. ऐसे में वे 200 से अधिक सीटें जीतते. मध्य प्रदेश घूमते यह बात स्पष्ट नजर आती है. हालांकि किन्हीं पार्टियों के चुनाव लड़ने या न लड़ने की स्थिति में ऐसा नहीं होता कि वोटर उन्हीं का इंतजार करता रहता है. नई पार्टियां भी अलगअलग मुद्दों पर लड़कर अपनी जगह बनाती हैं.  सपाक्स और आम आदमी पार्टी भी कइयों का बन रहा खेल बिगाड़ने की स्थिति में तो दिख ही रही हैं.

अंत में हम आपको याद दिलाते चलें कि समाजवादी पार्टी बीते लोक सभा चुनाव में अपना काफी नुकसान करवाने के बाद उत्तर प्रदेश की सत्ता भी गवां चुकी है. उसके पास अब हारने को कुछ खास नहीं. बसपा तो बीते से बीते विधान सभा चुनाव से ही सत्ता से बाहर है. बीते लोकसभा चुनाव में तो उसका खाता भी नहीं खुला था. जाहिर है ये दोनों पार्टियां कांग्रेस और भाजपा की सताई हैं. भले ही हालिया परिस्थितियां सपा को कांग्रेस के नजदीक लाई हैं लेकिन ये स्वाभाविक गठबंधन नहीं. ऐसी परिस्थिति में ये दोनों पार्टियां भी भाजपा और कांग्रेस को अपनी शक्ति का एहसास करवाने में कोई कोरकसर नहीं छोड़ना चाहतीं. अब फाइनल डिसीजन भले ही जनता के हाथ है लेकिन सपा और बसपा ने मध्य प्रदेश के सियासी अखाड़े में रोमांच का अतिरिक्त तड़का तो लगा ही दिया है