‘सुबह से जाए जाए शाम हो जाए है बाबू। तब्बो इतना पइसा न मिले जितना में आपन पेट पाल सकें। दिन भर बच्चों के लिए खाना पकाओ लेकिन अपने बच्चों को ही न खिला पाओ। 1250 रुपया महीना मिलता है। वह भी 10 महीना ही मिलता है। 1250 रुपया में हम क्या खाएंगे और क्या पहिनेंगे? सरकार हमें पइसा भी नहीं देती और हमारी नौकरी भी स्थाई नहीं करती। गरीब सब समझता है”
ये शब्द बिहार के सदिसोपुर की पुन्नू देवी की हैं। पुन्नू देवी मिड-डे मील के तहत प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में मिलने वाले भोजन को पकाने का काम करती हैं। जगह है दिल्ली का जंतर-मंतर और मौका है राष्ट्रीय मध्यान्ह भोजन रसोइया फ्रंट के तत्वाधन में आयोजित रसोइयों के विशाल महाधरना प्रदर्शन का। पुन्नू देवी जैसी सैकड़ों महिलाएं हाथों में छोलनी, छनवटा, कलछुल व खाना बनाने वाले अन्य बर्तन लेकर जंतर मंतर पर आयोजित प्रदर्शन का हिस्सा बनने बिहार झारखंड और यूपी से आई हुई हैं।
दरअसल, देश भर में 35 लाख रसोइएं हैं जो सरकार की मिड-डे मील योजना से जुड़े हुए हैं। इनमें ज्यादातर महिलाएं हैं। ये रसोइए मिलने वाले मानदेय सहित कई अन्य मांगों को लेकर पिछले कई सालों से संघर्षरत हैं, लेकिन इन्हें आश्वासन के सिवाय अबतक कुछ हासिल नही हुआ। ज्ञात हो कि देशभर के रसोइए बिना किसी राजनीतिक झंडे के कई वर्षों से आंदोलन कर रहे हैं।
राष्ट्रीय मध्यान्ह भोजन रसोइया फ्रंट के संस्थापक सह राष्ट्रीय महासचिव रामकृपाल सिंह मंच से बोलते हैं, “हम रसोइयों के हित को लेकर 2014 से आंदोलनरत है लेकिन हमें अबतक आश्वासन के सिवा कुछ हासिल नहीं हुआ। 2014 में भी जब हमने आंदोलन किया था तो केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी और राजनाथ सिंह की ओर से हमारा मानदेय 5000 करने का वादा किया गया था लेकिन अबतक पूरा नहीं हुआ। उसके बाद 2015 और फिर 2016 में भी हमने धरना दिया। जब हम अपनी आवाज़ बुलंद करते हैं तो हमसे कहा जाता है कि तुम्हारी जगह किसी और को रख लेंगे। प्रदर्शन में मौजूद महिलाओं की संख्या बताती है कि ये सरकार नारी सशक्तिकरण का महज़ ढकोसला करती है। जंतर-मंतर पर नारेबाजी तेज हो जाती है, रसोइया महिलाएं ज़िंदाबाद”
और फिर पूरी सभा “ज़िंदाबाद ज़िंदाबाद” के जय घोष से गूंजने लगती है। “नून रोटी खाएंगे, मोदी को हराएंगे”। “1-2 हज़ार में दम नही, 10 हज़ार से कम नही” जैसे नारे देखने-सुनने में आते हैं।
इन लाचार महिलाओं की सुध लेने सत्ता पक्ष या विपक्ष का कोई बड़ा नेता नही पहुंचा। स्वामी अग्निवेश अकेले मंच थामते दिखे लेकिन वे वहां रसोइयों के हक से ज्यादा मोदी-योगी पर निशाना साधते दिखे। साथ ही अपने भाषण में प्रियंका गांधी की तारीफ करते हुए कांग्रेस को जिताने का आह्वान करते रहे।
… और अंत में कांग्रेस ने अपने युवा अध्यक्ष को घटिया राजनीति करने भेज दिया।
कांग्रेस यहां भी अपना राजनीतिक एजेंडा घूसेड़ने में पीछे नहीं रही। कांग्रेस के तरफ से युवा कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष केशव चंद यादव धरना के समर्थन में आए। मंच से उन्होंने राहुल गांधी के बेसिक इनकम की बात की। साथ ही कहा अगर कांग्रेस सत्ता में आती है तो सभी गरीबों को यूनिवर्सल बेसिक इनकम मिलेगा। रसोइयों के इस मंच पर आधा से ज्यादा समय तक कांग्रेस के घोषणा का बखान और राहुल के बेसिक इनकम के वादे पर ही बात करते रहे। लेकिन कहीं भी उनके मांगों को पार्टी के सत्ता में आने पर पूरा करने का आश्वासन नहीं दिया। भाषण के दौरान ही उनके साथ आए कांग्रेस के नेता रसोइयों के साथ सेल्फी लेने के लिए मारामारी करते रहे दिखे। ऐसा लगा जैसे कांग्रेस सभी प्रदर्शनकारी मंचों को लूटने की जल्दबाजी में है।
भभुआ से आये रसोइया मालती देवी के पति महेंद्र पासवान मीडिया के प्रति भी अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए कहते हैं “हम लोग इतना बार दिल्ली आए। आप लोग कैमरा में रिकॉर्ड करके ले गए लेकिन आज तक टीवी पर कुछ नहीं दिखा। हम 14 को पटना में फिर से प्रदर्शन करेंगे। चाहे जान चली जाए पर पीछे नही हटेंगे।”
लेकिन क्या रसोइयों की ये मांग चुनाव के बाद भी प्रासंगिक रहेगी? क्या उनकी इस मांग को राजनीतिक दल पूरा करेंगे? या सिर्फ वोट लेने के लिए राजनीतिक पार्टियां हमेशा की तरह उनका दोहन करती रहेंगी?
हमारे जाते-जाते पन्नू देवी कहती हैं, “हम दूसरों का पेट भरते हैं लेकिन हमारे पेट कोई नहीं भरता। हमको हमारी मेहनत का भी पइसा नहीं मिलता। चाहे मोदी हो, चाहे नीतीश. चाहे कांग्रेस हो या कोई. सभी ने हमारी मांगों को नजरअंदाज किया है, लेकिन अब वही राज करेगा, जो हमारी हित की बात करेगा।”
द बिहार मेल के लिए यह ग्राउंड रिपोर्ट अविनीश मिश्रा और हर्षित जैन ने की है. यह दोनों पत्रकारिता के छात्र हैं.