कोसी के कहर के बीच ‘सुपौल’ में किसकी कहां से होगी दावेदारी और कहां हैं मुद्दों की बात?

कोसी के कहर के बीच ‘सुपौल’ में किसकी कहां से होगी दावेदारी और कहां हैं मुद्दों की बात?

सूबे में कोरोना के बढ़ते मामले, मॉनसून में झमाझम बारिश और कोसी नदी के बढ़ते जलस्तर के साथ ही विधानसभा चुनाव 2020 के मद्देनजर सभी दलों की चुनावी सक्रियता बढ़ गई है. बात गर सुपौल जिले की करें तो साल 1991 में सहरसा से कटकर बनने वाले इस जिले की पहचान कोसी नदी से रही है. हालांकि सियासी तौर पर इस जिले को स्वतंत्रता सेनानी पंडित राजेन्द्र मिश्र, पूर्व रेलमंत्री ललित नारायण मिश्र, पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. जगन्नाथ मिश्र, लहटन चौधरी, समाजवादी आंदोलन के नेता अनूपलाल यादव और हाल के दिनों में बिजेन्द्र प्रसाद यादव से जोड़कर देखा जाता है. विधानसभा चुनाव के मद्देनजर भी सभी राजनीतिक दल अपने संगठन के पेंच कसने में जुट गए हैं. जदयू द्वारा ‘बूथ जीतो अभियान’ के तहत बूथ लेवल पर बैठकें की जा रही हैं. राजद के लोग भी जिले के बाद प्रखंड एवं पंचायत स्तर पर संगठन में लोगों की जिम्मेदारियां सुनिश्चित कर रहे हैं. भाजपा तो बहुत पहले ही चुनावी तैयारी शुरू कर चुकी है और कांग्रेस की ओर से भी डिजिटल सदस्यता अभियान चलाया जा रहा है. ऐसे में हम आप सभी के लिए सुपौल जिले की एक मोटामोटी तस्वीर और खाका लेकर आए हैं- साथ ही लेकर आए हैं मुद्दों की जरूरी बात-

2010 विधानसभा चुनाव में कुछ यूं रहे परिणाम
यहां हम आपको बताते चलें कि साल 2010 में यहां जद (यू) को राजनीतिक तौर पर खासा फायदा हुआ था. जिले की पांचों सीटों पर जद (यू) के प्रत्याशियों ने जीत हासिल की थी. राजद और कांग्रेस का खाता तक नहीं खुल सका था. हालांकि साल 2010 में भाजपा और जद (यू) साझा लड़े थे और राजद और कांग्रेस अलग-अलग लड़े थे.

2015 विधानसभा चुनाव में सब हुआ उलट-पुलट
विदित हो कि साल 2014 के परिणाम के बाद लालू और नीतीश साथ हो गए. सूबे और जिले का राजनीतिक समीकरण भी बदल गया. बदले समीकरण के लिहाज से हुए गठबंधन में जद (यू) को क्रमश: (सुपौल, त्रिवेणीगंज और निर्मली) तीन सीटें लड़ने को मिलीं. जद (यू) तीनों सीटों को जीतने में कामयाब रही. राजद को पिपरा और छातापुर सीटें मिलीं. जिसमें उसे पिपरा में जीत और छातापुर में हार मिली. एनडीए के लिहाज से बात करें तो साल 2015 के चुनाव में भाजपा और लोजपा जैसी पार्टियां एनडीए का हिस्सा थीं. जिले की चार सीटें (सुपौल, निर्मली, पिपरा और छातापुर) क्रमश: भाजपा के खाते में गईं और लोजपा के खाते में त्रिवेणीगंज आया. तो कहने का मतलब यही है कि जिले के लिहाज से तब सिर्फ छातापुर में ही एनडीए को कामयाबी मिल सकी.

साल 2020 में क्या है दलों के गठबंधन की संभावना?
गौरतलब है कि कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच राज्य सरकार भले ही चुनाव कराने पर अड़ी हो और चुनाव आयोग भी संभव कोशिशें कर रहा हो, लेकिन दलों के बीच गठबंधन की रूपरेखा अभी स्पष्ट नहीं. सत्तारूढ़ एनडीए की पार्टियों के भीतर भी खींचतान देखी जा रही है. लोजपा के नए अध्यक्ष चिराग पासवान ने तो एनडीए गठबंधन के अटूट होने वाले बयान पर अपने एक जिलाध्यक्ष को बाहर तक निकाल दिया. जद (यू) और भाजपा के साथ आने के बाद जाहिर तौर पर एनडीए में अधिक खींचतान होगा. एनडीए के भीतर सीट बंटवारे के सवाल पर भाजपा के वरिष्ठ नेता सह एनडीए संयोजक नागेन्द्र नारायण ठाकुर कहते हैं, “देखिए सीट बंटवारा तो शीर्ष नेतृत्व के जिम्मे है लेकिन भाजपा तो लोकसभा के फॉर्मूले पर ही सीट बंटवारा चाहती है. हमारी दावेदारी छातापुर और पिपरा सीट पर है लेकिन गठबंधन में संतुलन के लिहाज से एक सीट लोजपा को भी दिया जाना चाहिए.” वहीं एनडीए गठबंधन के भीतर सीटों के बंटवारे के सवाल पर जद (यू) के जिलाध्यक्ष रामविलास कामत कहते हैं, “देखिए हमलोग तो जिले की पांचों सीटों के लिहाज से तैयारी कर रहे हैं, लेकिन चार सीटों पर तो हमारी मजबूत दावेदारी है. बाद बाकी कोशी क्षेत्र में मंत्री बिजेन्द्र प्रसाद यादव ही अंतिम मुहर लगाएंगे.

लालू प्रसाद, जगन्नाथ मिश्र और जीतन राम मांझी के साथ नागेन्द्र ठाकुर

महागठबंधन के लिहाज से सीटों के गुणा-गणित पर हमसे बातचीत में राजद के जिला प्रधान महासचिव रामसुंद मुखिया ‘निषाद’ कहते हैं, “देखिए हमारी तैयारी तो जिले के पांचों सीटों के लिहाज से है, लेकिन अंतिम निर्णय शीर्ष नेतृत्व के हाथ में ही है.” वहीं कांग्रेस के जिलाध्यक्ष विमल यादव हमसे बातचीत में क्रमश: चार सीटों (सुपौल, छातापुर, निर्मली और त्रिवेणीगंज) से दावेदारी की बात कहते हैं. जिले के भीतर हो रही राजनीतिक वर्जिश और खींचतान पर जिले की राजनीति को समझने वाले राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर कहते हैं कि एनडीए गठबंधन में जहां सीटों का बंटवारा बिजेन्द्र प्रसाद यादव के हाथ में होगा. वहीं महागठबंधन में एक सीट कांग्रेस के खाते में जा सकती है.

कांग्रेस जिलाध्यक्ष विमल यादव

जिले की राजनीति में मुद्दे हैं या भी या नहीं?
अब तक तो आपने चुनावी गुणा-गणित के बारे में पढ़ा लेकिन ‘मुद्दों की बात’ के बगैर इस गुणा-गणित को समझने के भी कोई खास मायने नहीं. इस इलाके में हर साल बाढ़ का आना नियति है. जुलाई-अगस्त का महीना हर साल डरावना है. बाढ़ को नाम पर हर साल व्यवस्थित लूट होती है. कमाने वाले तो कमाके लाल हो रहे हैं लेकिन समस्याएं जस की तस हैं. बाढ़ और लूट के सवाल पर लगभग एक दशक से संघर्ष कर रही दीपिका झा हमसे बातचीत में कहती हैं कि बाढ़ के नाम पर राहत बांटना इस पूरे इलाके में व्यवस्थित लूट का नाम है. कोसी की वजह से इलाके में पसरा पानी यहां के नेताओं और प्रशासनिक अमले-जमले के लिए दुधारू गाय सरीखा है. इसके बावजूद तटबंध के भीतर गुजर-बसर करने वाली लगभग 5-7 लाख की आबादी हर साल जून से सितंबर के दौरान डर के साथ ही सोती-जागती है. क्या सुशासन बाबू के उपनाम से चर्चित बिहार के मुखिया को ऐसी तमाम बातें नहीं दिखाई देतीं?

सामाजिक कार्यकर्ता दीपिका झा

डिजिटल और वर्चुअल रैली के दौर में इस इलाके में “OUR बलुआ बाजार” के नाम से एक बड़ा और समसामयिक फेसबुक पेज चला रहे पुरुषोत्तम भारद्वाज हमसे स्थानीय राजनीति और मुद्दों के धरातल पर न होने के सवाल पर करते हैं, “देखिए जिले की मुख्य सड़कों और बिजली के लिहाज से कुछ अच्छा काम तो जरूर हुआ है लेकिन ग्रामीण सड़कों के साथ ही शिक्षा और स्वास्थ्य के मसलों पर और काम किए जाने की आवश्यकता है. बजाय इसके कि नौजवानों के लिए एक बढ़िया कॉलेज होता और उनके लिए रोजगार सृजन होता, तो कई धार्मिक संगठन युवाओं को बरगला रहे हैं. उन्हें उन्मादी बना रहे हैं.”

‘OUR बलुआ बाजार’ फेसबुक पेज के संचालक पुरषोत्तम भारद्वाज

ऐसे दौर में जब सूबे में कोरोना चारों तरफ अपने पैर पसार रहा है, और समूचे देश से मजदूर अपने घरों को लौटे हैं. पलायन और वापसी जैसे शब्दों पर चर्चा हो रही है. ठीक उसी दौर में कुछ पैदावार कर लेने वाले किसानों के पास भी उसे उचित मूल्य पर बेच पाना लगभग नामुमकिन ही है. खेतीबाड़ी, उचित दाम और पलायन के सवाल पर जिले के कारोबारी और कोसी राजमा फार्म प्रोड्यूसर कंपनी के चेयरमैन राजेन्द्र कुमार सिंह हमसे बातचीत में कहते हैं, “देखिए सरकार की तरफ से फसल खरीद की उचित व्यवस्था नहीं है. किसान को मजबूरन चीजें न्यूनतम समर्थन मूल्य से आधी कीमतों में बेचनी पड़ रही हैं. कोरोना काल में वापस लौटे मजदूर फिर से दिल्ली-जयपुर और लुधियाना का रुख कर रहे हैं.”

पलायन की हालिया तस्वीरें – Picture Credit: Reuters

कोरोना काल के दौरान मनरेगा के तहत रोजगार दिए जाने के सवाल पर इलाके में मजदूरों के सवाल पर संघर्ष करने वाले विपिन यादव हमसे बातचीत में कहते हैं, “देखिए सरकार की ओर से किए गए मनरेगा के तहत कराए जा रहे दावे में दम नहीं दिखता. जमीन पर अब भी मशीनों से काम लिया जा रहा है. फर्जी लेबर कार्ड के मार्फत अवैध निकासी होती है. जिले से लेकर पंचायत स्तर पर नेक्सस बना हुआ है.

चुनावी तारीखों की आधिकारिक घोषणा में भले ही थोड़ा समय हो लेकिन सरकारी और विपक्षी दल अपने-अपने हथियार तेजी से पंजाने लगे हैं. दावेदार सुपौल से पटना और पटना से सुपौल की यात्राएं ताबड़तोड़ कर रहे हैं. डीजल और पेट्रोल के बढ़ते दामों को लेकर राजद ने इस बीत हर ब्लॉक और पंचायत के स्तर पर प्रदर्शन किया, लेकिन जिले की राजनीतिक तस्वीर अलग-अलग गठबंधनों के आधिकारिक घोषणा और टिकटों के बंटवारे के बाद ही होगी…

– सुपौल जिले के लिहाज से इस राजनीतिक ब्यौरे और रपट को ‘द बिहार मेल’ के लिए कृष्णा मिश्रा ने लिखा है. –