आखिर क्या है ‘मॉब लिंचिग’ के बढ़ने की वजह ?

आखिर क्या है ‘मॉब लिंचिग’ के बढ़ने की वजह ?

मॉब लिंचिंग एक नए टर्म के तौर पर इस बीच खूब सुना जा रहा है. मॉब लिंचिग का मतलब है कि भीड़ किसी व्यक्ति को किसी भी तरह का गुनाह करने के शक के आधार पर मारनापीटना शुरू कर दे. इतना ही नहीं, कई बार तो भीड़ किसी व्यक्ति को घटनास्थल पर ही तब तक पीटती रहे जब तक उसकी मौत न हो जाए. ऐसे में सबसे पहले इसका शिकार हो रहे सामाजिक समूहों की पहचान किए जाने की जरूरत है. मॉब लिंचिंग की घटनाएं पिछले 4 से 5 वर्षों में ज्यादा सामने आई हैं. पहले इस प्रकार की घटनाएं बलात्कार करने वाले पुरूषों के साथ होती थी और फिर इसमें सांप्रदायिक रंग देखने को मिलने लगे, और इस बीच ये बच्चा चोरी की घटनाओं के साथ दिखने लगी हैं. शायद ही कोई सभ्य इंसान इस बात का समर्थन करे.

आखिर कौन हैं इसके शिकार?

मॉब लिंचिंग की हालिया घटनाओं को देखा जाए तो मुसलमान इसके सॉफ्ट टारगेट हैं. उसके बाद दलित और पिछड़ी जातियां हैं. जैसे बीते दिनों छपरा के भीतर जानवर चोरी के आरोप में मारे गए एक मुसलमान और दो नटों को ही देखा जाए. इस पूरे प्रकरण में गौर करने लायक चीज यह है कि ऐसी घटनाओं के शिकार मुसलमानों, दलितों और पिछड़ों की सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि कमोबेस एक ही जैसी है.

क्या हैं मॉब लिंचिग के कारण?

यदि हम आजाद भारत के 70 वर्षों के इतिहास को देखें तो हम पाते हैं कि भारत का संविधान सबको समता व स्वतंत्रता का अधिकार देता है. हालांकि ऐसे तमाम अधिकार महज कागजों तक सीमित हैं, इस बात को स्वीकारने में हम जरा सी ईमानदारी तो बरत ही सकते हैं. इस वजह से भी समाज के पिछड़े समाजों में असंतोष की भावना है. आज़ादी के समय देश ने जो सपना देखा था जो सफ़ल नही हो पाया.

देश में अलग-अलग सरकारें भले ही बदलती रही हों लेकिन इसके बावजूद भ्रष्टाचार बढ़ता गया व भारत की राजनीति जनता से जुड़ने के बजाय बाजार के प्रति अधिक जवाबदेह होती गई. गरीबी और अमीरी की खाई दिन प्रतिदिन बढ़ती गई. जनसमस्यायों को हल करने में  सरकारों की नाकामियां, सरकारी व निजी क्षेत्र में अवसरों की कमी व बेरोजगारी की बढ़ती दर ने लोगो में असंतोष को हवा दिया. अलग-अलग राजनीतिक दलों ने भी इन मौकों का इस्तेमाल अपने फायदे में किया, उसका राजनीतिक इस्तेमाल किया. सांप्रदायिक ताकतों ने इसका इस्तेमाल एक समुदाय को दूसरे समुदाय के ख़िलाफ़ खड़ा करने के लिए किया व उपर्युक्त समस्यायों का कारण दूसरे समुदाय को बताया.

न्याय मिलने में देरी भी है वजह

अब यह तो एक फैक्ट है कि हमारे देश के न्यायालय में जारी तमाम सुनवाइयों के निबटारे के लिए न्यायपालिका के पास पर्याप्त न्यायाधीश नहीं हैं. ऐसे में लोग भी त्वरित न्याय करना चाहते हैं. न्यायपालिका बहुत इंतजार करवा रही है. न्याय मिलने तक उसका महत्व खत्म हो जा रहा है. लोग भी सालों इंतजार नहीं करना चाहते. इन्हीं वजहों से वे कानून अपने हाथों में लेने लगे हैं. भीड़ ही वकील है और जज भी.

हमारे समाज की पुरातन सोच भी है वजह

भीड़ की सामूहिक हिंसा आदि के अन्य कारणों में भारतीय समाज की सोच भी एक वजह है. भारतीय समाज में अच्छी खासी संख्या सामंतवादी विचारों के लोगो की है. ऐसे लोगों में लोकतान्त्रिक विचारों की कमी देखी जाती है. इन लोगों का सरकार, व्यवस्था व कानून में कोई विश्वास नहीं होता. ये स्वयं को समाज का ठेकेदार मान कर चलते हैं. अभी तक भारतीय समाज में नागरिकता का भाव पैदा नहीं हुआ है और इस वजह से भी कई समस्याएं देखने-सुनने को मिलती हैं. ऐसे में अंत में तो यही कहा जा सकता है कि देश की आज़ादी के 70 वर्षों के बाद भी इस प्रकार की सामाजिक कुरीतियों का जिन्दा होना भारतीय लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए सही नहीं और इसे फैलने न देने में ही समाज व देश की बेहतरी है

यह आलेख अनुराग गौतम ने लिखा है और वह दिल्ली विश्विद्यालय में शोधार्थी हैं. ये उनके स्वतंत्र विचार हैं.