‘मोहब्बत के लिए तेरे भाई ने परेड छोड़ दी थी’

‘मोहब्बत के लिए तेरे भाई ने परेड छोड़ दी थी’

हम दोनों एक ही स्कूल में बचपन से पढ़ते थे. उस स्कूल में मेरा एडमिशन पहला था. रोल नंबर-1… कई सालों तक रहा मैं. धीरे-धीरे हमारी आंखों में गहराई आ रही थी. पहला बचपना था. आंखें नन्ही-नन्ही थी. फुरस्त किसे थी आंखों में झांकने की. वो मेरे घर आती. मैं स्कूल का सबसे ड्यूड लड़का था. स्टाइलिश दिखता था, था नहीं. सरदारों से कम बात करती थी वो. सिर्फ मुझसे… ‘प्रियोदत्त आज शाम को मैं और नेहा तेरे घर आ रहे हैं.’

लड़कियों वाली साइकिल थी उसके पास. डंडा नहीं होता इसमें. वो मेरे घर आई.  उसने बताया कि कोच साहब ने उसे जिम्मा दिया है कि लेजियम और 26 जनवरी के दिन परेड वाले बच्चों की लिस्ट बनाने का.  शायद तब मैं 6वीं क्लास में था. पांचवी से आगे निकलने वाले बच्चों का स्वैग अलग ही होता है. पैंसिलें पांचवीं में ही छूट गई.  हाथ में पेन आ जाता है.  ऐसा लगता है कि तेरा भाई तो अब चेक ही चेक साइन करेगा.  लव लैटर लिखेगा ऐसी स्याही से जो कभी नहीं मिटेगी.

वो आई, नेहा साथ थी.  उसका नाम मैं नहीं बताऊंगा. फिर भी चलो… प्रियंका मान लेते हैं.  हमने लिस्ट बनाई.  मैं जुड्डो में था. जुड्डो वाले बच्चे मैंने तैयार करने थे. वो डांसर थी. क्या नाचती थी.  ऐसा मुझे पांचवी के बाद लगने लगा. पता नहीं… सुरमा क्यों लगाने लग गई यार पांचवी के बाद. नेहा वैसी ही थी लेकिन प्रियंका बदलती जा रही थी… रोज ही रोज.

लिस्ट तैयार… 26 जनवरी के दिन पूरे गांव में लेजियम करते-करते स्कूल प्रदर्शन करेगा. फिर सरकारी स्कूल में डीएम साहब आएंगे उनके सामने परेड होगी. लीड प्रियोदत्त करेगा. ऐसा स्वराज मैडम ने कहा. मैं भी तैयार. यहां ये बताना जरूरी है कि लिखने वाला 5वीं क्लास तक अव्वल था. उसके बाद उसने सोचा कि अव्वल रहने से कुछ नहीं होता.  सब आंखों का खेल है. मोहल्ले में दूसरे गांव से आती लड़किया राजू की तरफ क्यों देखती रहती हैं? मां की आंखें आज भी इतनी खूबसूरत क्यों हैं? राधा जो बिहार से आई है पूर्ण जट्ट उसकी आंखों पर क्यों मरने लगा? ये ना लिखने वाला जानता है… ना ही आपको समझा सकता है लेकिन आंखों का जादू चल रहा था. खैर…

26 जनवरी सुबह जल्दी मैं स्कूल पहुंच गया. प्रियंका भी आ गई. सब आ गए. ओ देख… स्वराज मैडम आ गई. प्रियंका ने कहा. उनके पति फुटबॉल प्लेयर हैं. नई-नई शादी हुई है. प्रियंका से पहले मुझे स्वराज मैडम की आंखें ज्यादा अच्छी लगती थीं. स्वराज मैडम भी कहती, ‘प्रियोदत्त चलता बहुत अच्छा है.’ आजतक नहीं पता चला कि स्याला कहां से अच्छा चलता हूं. स्वराज मैडम ने मुझे और प्रियंका को लीड में रखा. हम दोनों ने पूरे गांव में लेजियम किया. मेरे मम्मी-डैडी बड़े खुश… उसके बाद सरकारी स्कूल. वहां डीएम साहब के सामने परेड करनी थी.

प्रियंका का नाखून टूट गया. मुझे पता चला. कुछ समझ नहीं आया. स्वराज मैडम ने कहा चलो-चलो परेड शुरू होने वाली है. मैं अंदर ही अंदर ये बोल रहा था कि यार प्रियंका कित्तथे गई? वो गेट के पास… अचानक से दिख गई मुझे. यार लेकिन परेड, कल मार पड़ेगी, खा लेंगे, अभी चल. मैं चल दिया। साइकिल उठाई.

प्रियंका- ओए… यहां क्या कर रहा है. चल स्कूले
मैं- ना-ना तेनू नहीं छड़ सकदा
प्रियंका- मैं चली जूं… कल मार पड़ेगी तेरे को
मैं- कोई ना…

उसकी गली के मोड़ तक उसे छोड़ आया. फिर वापस स्कूल आया. परेड हो चुकी थी. अगले दिन मेरी स्कूल में परेड होनी थी. मोहब्बत के लिए तेरे भाई ने तिरंगे को सलाम नहीं किया. अपना तिरंगा तो प्रियंका ही थी. अगले दिन स्कूल गया. किसी ने कुछ नहीं कहा.  मुझे ऐसा लगा जैसे सबको पता है मैं प्रियंका का बहुत ख्याल रखता हूं. हालांकि किसी को कुछ नहीं पता था. बस मैं और प्रियंका ही जानते थे कि हमारी मोहब्बत गणतंत्र दिवस के दिन शुरू हुई थी उस तिरंगे से बहुत दूर. किसी तंग गली के मोड़ पर.

नोट: यह कहानी प्रियोदत्त ने लिखी है. ऊंचालंबा कद और कभी विदेशी भी कह दिया जाने वाला प्रयोदत्त उर्फ पीडी. दिल्ली की गलियों में पठानी कपड़े डाल ठाठ से घूमता है और किस्सागोई में माहिर आदमी है. गाने में जैसे फ्यूजन होता है न! पीडी वैसे ही कई संस्कृतियों का मेल अपने साथ लेकर चलने वाला इंसान है.