कोरोना वायरस: दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोईदेश

कोरोना वायरस: दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई

बालकनी पर केहुनी टिकाकर खड़े होना और नीम की पीली पड़ी पत्तियों को गिरता देखना, दिन कुछ ऐसे गुजरता है.…

कोरोना डायरी: मुझे डर लगने लगा है कि ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ कहीं ग्राम्य बोध को न खत्म कर दे…खबरें

कोरोना डायरी: मुझे डर लगने लगा है कि ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ कहीं ग्राम्य बोध को न खत्म कर दे…

अपने ज़ाती काम से आकर मैं अब भी अपने गांव में ही हूं. मौका पाकर फिर से गांव घूमने लगा…

‘वुहान को देखकर कभी नहीं लगा था कि यह सब हमारे अपने देश में भी होगा’देश

‘वुहान को देखकर कभी नहीं लगा था कि यह सब हमारे अपने देश में भी होगा’

चीन के वुहान से आने वाली ‘कोविड-19’ की खबरें बनाते समय कभी यह नहीं सोचा था कि एक दिन वुहान…

कोरोना डायरी: जब ज़ाती काम से अपने ‘गांव’ पहुंचा शख्स अपने ही ‘गांव’ में फंस जाएखबरें

कोरोना डायरी: जब ज़ाती काम से अपने ‘गांव’ पहुंचा शख्स अपने ही ‘गांव’ में फंस जाए

मैं, अपने एक ज़ाती काम से 18 मार्च को अपने गांव पीरू जिला औरंगाबाद आया था. काम तीन-चार दिन का…

लॉकडाउन डायरी, डे -9: “जो हम आज हैं, वही बनना हमारी सबसे गहरी इच्छा थी”खबरें

लॉकडाउन डायरी, डे -9: “जो हम आज हैं, वही बनना हमारी सबसे गहरी इच्छा थी”

आज के बाद लॉकडाउन के बाद आठ दिन और बचते हैं. आज का दिन मिलाकर नौ दिन हुए. नौ मेरा…

लॉकडाउन जर्नल: बाहर का अन्याय खत्म करने के लिए हमें भीतर का अन्याय खत्म करना होगाखबरें

लॉकडाउन जर्नल: बाहर का अन्याय खत्म करने के लिए हमें भीतर का अन्याय खत्म करना होगा

मुझे लगता है कि मैं एक चक्रवात के बीच फँसी हूँ. दो अलग दुनियाओं से उठती हवाओं का बना चक्रवात.…