‘वुहान को देखकर कभी नहीं लगा था कि यह सब हमारे अपने देश में भी होगा’

‘वुहान को देखकर कभी नहीं लगा था कि यह सब हमारे अपने देश में भी होगा’

चीन के वुहान से आने वाली कोविड-19’ की खबरें बनाते समय कभी यह नहीं सोचा था कि एक दिन वुहान के लोगों की तरह घर में कैद होकर अपनी एक डायरी ‘‘लॉकडाउन डायरी’’ की शुरुआत इन शब्दों के साथ ही करनी पड़ेगीआज 12 अप्रैल 2020 कोरोना वायरस को फैले करीब चार महीने हो गए हैं और अब पूरी दुनिया इसकी चपेट में है….कल जो चीन के साथ हो रहा था आज पूरी दुनिया के साथ हो रहा हैकल जैसे चीन के लोग खतरे में थे आज हम खतरे में हैंजैसे उसके लोग बंद थे आज हम बंद हैं….

पत्रकार होने के नाते उन सभी बदलावों को काफी करीब से महसूस किया जिनकी कभी कल्पना नहीं की थीलॉकडाउन के बाद से घर से बाहर जाना बंद हो गया है लेकिन काम नहीं थमा, खबरें बनाने और उसे लोगों तक पहुंचाने का काम अब भी जारी हैइन दिनों मेरी सुबह की शिफ्ट चल रही हैसुबह से शाम खबरों के बीच हो जाती है लेकिन इस बीच मेरे आस पास मेरे घरवालों की जिंदगी में काफी कुछ होता है.

शुरुआत अपनी बहन से करना चाहूंगी. दुबई से अपना जन्मदिन मनाने के लिए दिल्ली आई थी, उसने सोचा था अपने परिवार वालों के साथ जन्मदिन मनाएगी, घूमेगीफिरेगी और फिर जीजू के पास वापस चली जाएगीलेकिन किसी ने सच ही कहा है जैसा सोचा वैसा हो जाए तो यह जीवन, जीवन नहीं कहलाएगा… और इस बार उसके साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ वह आई जन्मदिन भी मनाया लेकिन उसके बाद सरकार की ओर से आई एक घोषणा जिसने उसके घूमनेफिरने पर ही रोक नहीं लगाई बल्कि उसके वापस जाने के रास्ते भी बंद कर दिए. अब वह रोज सुबह उठकर मुझसे पूछती है कि आज क्या करूंघर के कुछ काम निपटाने के बाद फिर घंटों तक टिकटॉक देखती है…. फिर नेटफ्लिक्स परलूसिफरदेखती है जो उसका नया पसंदीदा शो है…. क्योंकि उसे लूसिफर की तरह पंख चाहिए जिससे उड़कर वह दुबई चली जाएइसके बाद थक-हार कर शाम को जीजू से वीडियो कॉल पर बात करती है और फिर हम सबके साथ उनो खेल सो जाती है.

वैसे तो उनो खेलना हमारे घर का आखिरी काम होता है लेकिन मेरे भाई के लिए नहीं, वह उनो खेलने के बाद घंटों फोन चलाता है, रात के एक या दो बजे तक या कभीकभी उससे भी देर तकहर मां की तरह मम्मी भी बारबार रात में उठ कर उससे पूछती रहती है कि आखिर फोन में कर क्या रहा है सो जा, जिसका वह जवाब देना भी जरूरी नहीं समझता और फोन में मसरूफ रहता है, जितनी देर से सोता उतनी ही देर से उठता हैहम सभी की तरह उसका भी वर्क फ्रॉम होम चल रहा है.  11 बजे की वीडियो कॉल हो तो साढ़े 10 उठकर आधे घंटे में तैयार होने का टैलेंट उसमें है….इसके बाद शाम तक उसका काम चलता हैफिर एक्सरसाइज करता है…. फिर खाना खाकर उनो जो हमारे घर की दिनचर्या का हिस्सा है और फोन हाथ में लेकर फिर बिस्तर पर लेट और घंटों उसमें आंखे डाले रहता है

जैसे रातभर फोन चलाना उसका काम है वैसे ही मम्मी का रातरात को उठकर उसको टोकना

मम्मी की सुबह जल्दी उठने की आदत है और रात में कई बार उठने पर भी सुबह चारपांच बजे उठ जाना उनका टैलेंट है….. कभी पानी भरने के बहाने, तो कभी कपड़े धोने के बहाने लेकिन ये सब महज बहाने हैं क्योंकि सुबह उठना उनकी आदत है. मम्मी को सुबहसुबह ही सब काम करने की आदत भी है कई बार नहीं अक्सर वह हमारे उठने से पहले ही दोपहर के खाने की सब्जी बना लेती हैंखाना बनाना उन्हें पसंद है इसलिए उनका कैटरिंग का बिजनेस भी हैआज कल कोई काम आ नहीं रहा लेकिन आसपास कुछ भले लोग हैं जो जरूरतमंदों को खाना पहुंचाते हैं और उसे बनाने का जिम्मा मम्मी ने लिया है. मम्मी के रूटीन में कोई खास बदलाव नहीं आया है बल्कि शायद हम तीनों के घर पर होने की वजह से काम ज्यादा बढ़ गया है लेकिन पिछल दिनों वह कई बार शिकायत करती थीं कि घर में अकेले रहने से उन्हें कई बार घबराहट होने लगी हैउनकी घबराहट हालांकि कम नहीं हुई है लेकिन यह घबराहट अब शायद उन्हें हमसे हो रही है.

इन सब के बीच अपनी बात करना तो भूल गई. मेरा दिन एक जगह कई घंटे बैठेबैठ खबरों के बीच ही बीत रहा है . कई बार शिफ्ट खत्म होने के बाद जुम्बा कर लेती हूं .स्नैपचैट और इंस्टाग्राम चलाती हूंरात में बाकियों की तरह उनो खेलकर सो जाती हूंकई बार दोस्तों और रिश्तेदारों से वीडियो कॉल पर बात कर लेती हूंवीडियो कॉल से याद आया एक दिन मेरी मासी से मेरी बात हो रही थी उन्होंने पूछा शिफ्ट खत्म हो गई तो मैंने कहा नहीं छुट्टी थीमासी ने कहा वाह घर पर रहकर भी छुट्टी होती हैऔर इस बात पर हम काफी देर तक हंसे, हां अब तो घर रहकर भी छुट्टी होती है.

यह डायरी निहारिका गोयल की है. वह पेशे से पत्रकार हैं.