कैमूर में ‘टाइगर रिजर्व’ को लेकर आदिवासियों को सता रहा उजड़ने का डर

कैमूर में ‘टाइगर रिजर्व’ को लेकर आदिवासियों को सता रहा उजड़ने का डर

बिहार का एक जिला है कैमूर. झारखंड बंटवारे के बाद कैमूर बिहार के उन कुछेक जिलों में से एक है, जहां अनुसूचित जनजातियों ( आदिवासियों ) का बसेरा है. जहां जिले का लगभग 33 फीसदी हिस्सा वन क्षेत्र के अंतर्गत आता है. इसी जिले व पठार पर ही बसा है अधौरा ब्लॉक. आदिवासी बहुल इस ब्लॉक में हाल के दिनों में आंदोलन व प्रदर्शन हुए. लोग इस इलाके को ‘टाइगर रिजर्व’ के तौर पर चिन्हित किए जाने के खिलाफ उद्वेलित हैं और डरे भी हैं. यहां प्रदर्शन के हिंसक हो जाने के बाद से इलाके में पुलिस और प्रशासन की दबिश बढ़ गई है. कुछ लोग गिरफ्तार हुए हैं तो कई की धरपकड़ के लिए खोजबीन जारी है.

यहां हम आपको बताते चलें कि कैमूर जिले के अधौरा ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले अलग-अलग गांवों और टोलों में चेरो, खरवार, गोंड, उरांव, बैगा, कोरबा और अगरिया समेत और भी जनजातियां रहती हैं. इलाके को पहले वन अभ्यारण्य और अब ‘टाइगर रिजर्व’ घोषित किए जाने और उसे लेकर जारी गतिरोध के सवाल पर भारतीय जनता पार्टी के ब्लॉक अध्यक्ष व पूर्व मुखिया जोखन सिंह खरवार कहते हैं, ‘देखिए लोगों में इस बात को लेकर असंतोष है कि ‘टाइगर रिजर्व’ बनने के बाद उन्हें गांव खाली करना पड़ेगा. पहले ऐसी बातचीत थी कि 13 दिसंबर 2005 से पहले किसी तरह की जमीन पर खेती करने वाले का मालिकाना हक उसका ही होगा. उसे जमीन का पट्टा दिया जाएगा, लेकिन साल 2019 में वन विभाग ने वैसे घरों को ढाह दिया. पौधारोपण करवा दिया. सड़कें भी बिहार सरकार और रैयती जमीन पर बन रही है, वन विभाग कालिखकरण पर रोक लगा दे रहा है.’

वन क्षेत्र, अधौरा

राजीव प्रताप रूडी की अपील पर हो रही इलाके में बात

गौरतलब है कि टाइगर रिजर्व को लेकर स्थानीय लोगों में सुगबुगाहट तो बीते 6-7 महीने से हो रही थी. जब बाघ की हरकतें कैमरे में कैद हुईं और खबरें अखबार में प्रकाशित हुईं, लेकिन इस बीच भाजपा नेता व सारण सांसद राजीव प्रताप रूडी ने टाइगर रिजर्व के मसले को सदन के भीतर उठाया. उन्होंने सदन के समक्ष अपनी बात रखी कि झारखंड के बंटवारे के बाद कैमूर के पठार में वो तमाम संभावनाएं हैं कि इसे ‘टाइगर रिजर्व’ के तौर पर विकसित किया जा सके. उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश और झारखंड से सीमा साझा करने वाले इस इलाके को देश के सबसे बड़े टाइगर रिजर्व के तौर पर विकसित किया जा सकता है.

अधौरा ब्लॉक हेडक्वार्टर से सटे (सरईनार – नवानगर) गांव की रहनेवाली ममता देवी कहती हैं, ‘हमें यहां रहते हुए 20 साल से अधिक हो गए हैं लेकिन दिक्कत खत्म नहीं हो रही. न कॉलोनी मिल रहा और न ही शौचालय. न बिजली और न ही पीने का पानी. नदी-नाले का पानी पीकर लोग बीमार पड़ जा रहे सो अलग.’

टाइगर रिजर्व से संबंधित ‘प्रतिबंधों और भ्रांतियों’ को लेकर DFO का बयान

टाइगर रिजर्व से संबंधित प्रतिबंधों और लोगों में व्याप्त भय के लिहाज से हमने कैमूर जिले के वन प्रमण्डल पदाधिकारी (DFO) विकास अहलावत से बात की. विकास कहते हैं, ‘देखिए इस बात को माननीय सांसद राजीव प्रताप रूडी ने सदन के भीतर उठाया. हमें सिर्फ यही कहना है कि कैमूर और कैमूर की जनता के लिए यह अच्छी बात होगी. किसी को किसी भी तरह का कानूनी या प्रतिबंधात्मक स्थिति का सामना नहीं करना पड़ेगा. टाइगर रिजर्व बनने से किसी भी तरह की अतिरिक्त सख्ती नहीं होगी.’ साथ ही वे इस बात को भी जोड़ते हैं कि टाइगर रिजर्व की घोषणा के पीछे का मूल मकसद ‘National Tiger Conservation Authority – NTCA’ से फंड लाना है, ताकि इलाके के विकास कार्यों को रफ्तार दी जा सके.

अधौरा, अनुसूचित जनजाति

टाइगर रिजर्व को लेकर हो रहे प्रदर्शनों पर मंत्री सह विधायक का बयान

टाइगर रिजर्व को लेकर इलाके में हो रहे विरोध प्रदर्शनों, हिंसक झड़पों और लोगों पर हो रही पुलिसिया कार्रवाई पर हमने सूबे में कैबिनेट मंत्री सह चैनपुर विधायक बृज किशोर बिंद से बात की. बृज किशोर बिंद कहते हैं, ‘देखिए किसी ने (सांसद राजीव प्रताप रूडी) अपना विचार रखा है, लेकिन विचार रख देने मात्र से फैसला नहीं हो जाता. सरकार विचार को समझेगी. इस मामले को उलझाने वाली राजद की सरकार रही है. अभयारण्य लगाया और इलाके के विकास को अवरुद्ध किया. लोगों को परेशान किया. एक तार का पोल गाड़ने तक में दिक्कत का सामना करना पड़ता है. पेयजल की समस्या है.’

अंत में आप सभी को यही बताना है कि ऐसे समय में जब बिहार प्रांत के उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी का बयान आता है कि आगामी विधानसभा चुनाव में बिजली, सड़क और पानी कोई मुद्दा नहीं. ठीक उसी दौर में बिहार का एक पूरा ब्लॉक इन तीनों मूलभूत सुविधाओं से वंचित है. तिस पर से पहले अभयारण्य और चुनावी सरगर्मियों के बीच टाइगर रिजर्व बनने की बात ने यहां रहने वाले जनजातियों को पशोपेश में डाल दिया है. वहीं बात अगर पर्यावरण व वन्यजीव संरक्षण के लिहाज से करें तो यहां वनों का कटाव भी एक अहम मुद्दा है लेकिन इस पर कोई भी निर्णय वहां सदियों से रह रहे आदिवासी समुदाय को विश्वास में लिए बगैर संभव नहीं…