नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी जी,
विधानसभा के भीतर और बाहर युवाओं के शिक्षा और रोजगार के सवाल को बुलन्द करता हुआ देखकर आपसे युवाओं और छात्र-छात्राओं में उम्मीद पैदा हुई है। पिछले दिनों विधानसभा के भीतर जिस तरह से जनता के चुने हुए विपक्षी पार्टी के नुमाइंदों पर पुलिसिया हमला कराया गया, वह अत्यंत ही शर्मनाक और लोकतंत्र के इतिहास में काला दिन था।
इस घटना के खिलाफ आपकी पार्टी के द्वारा बिहार बन्द का आह्वान लोकतंत्र पर फासीवादी हमले के खिलाफ अहिंसक व लोकतांत्रिक तरीके से उठाया गया बेहद जरूरी कदम था, लेकिन उसी दिन आपकी पार्टी की छात्र इकाई के लोगों ने तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर हिंदी विभाग के हमारे एक शिक्षक दिव्यांनद को क्लासरूम में जबरन घुसकर छात्र-छात्राओं के सामने ही थप्पड़ मारा।
फिर उन्हें क्लासरूम से बाहर निकालकर विभागाध्यक्ष डॉ. योगेन्द्र महतो के सामने भी उन्हें थप्पड़ मारा। इस घटना के खिलाफ पीड़ित शिक्षक ने मारपीट करने वाले लोगों पर उसी दिन एफआईआर दर्ज कराया। बेशर्मी का आलम तो यह है कि इसके जवाब में शातिराना ढंग से घटना के दूसरे दिन शिक्षक को थप्पड़ मारने वाले छात्र राजद और अंग क्रांति सेना के लोगों ने एक दलित छात्र को सामने लाकर झूठा आरोप लगाते हुए एससी-एसटी एट्रोसिटी एक्ट के तहत उक्त शिक्षक और विभागाध्यक्ष दोनों पर मुकदमा दर्ज करा दिया। दोनों शिक्षकों पर जातिसूचक गाली देने का झूठा आरोप मढ़ा गया। जबकि सच्चाई यह है कि दोनों में से किसी शिक्षक ने किसी को भी कोई गाली-गलौज नहीं किया था, हममें से कई इस घटना के साक्षी भी रहे हैं।
हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. योगेन्द्र को जानने वाले देशभर के हजारों लोग उनपर लगाए गए इस किस्म के बेबुनियाद आरोप से सन्न और आहत हैं। प्रोफेसर अपूर्वानंद से लेकर प्रोफेसर रविभूषण जैसे राष्ट्रीय स्तर के ख्यातिलब्ध बुद्धिजीवी इस घटना से मर्माहत होकर हमलावर छात्र नेताओं पर कार्रवाई का मुद्दा उठा चुके हैं। हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. योगेन्द्र महतो पिछले चार दशक से सामाजिक-राजनीतिक आंदोलन में पूरी प्रतिबद्धता से सक्रिय रहे हैं और सामाजिक न्याय के अति संवेदनशील और जिम्मेदार योद्धा रहे हैं।
वे आपकी पार्टी से एक बार कोशी शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से विधान परिषद का चुनाव भी लड़ चुके हैं। उनके स्वभाव में जातिसूचक गाली देने वाली मनुवादी- सवर्ण-सामन्ती- पितृसत्तात्मक प्रवृत्ति कभी भी रही ही नहीं है। वे सच्चे लोहियावादी हैं। बहरहाल, एक तो शिक्षक की बिना किसी दोष के क्लास रूम में घुसकर पिटाई की गई और फिर उनके साथ-साथ विभागाध्यक्ष पर झूठा आरोप लगाकर मुकदमा दर्ज किया गया, यह अत्यंत ही शर्मनाक और निंदनीय कृत्य है।
यह न केवल एक शिक्षक की गरिमा बल्कि सामाजिक न्याय की विचारधारा का भी खुला उपहास है। घटना के बाद आपकी पार्टी की छात्र इकाई के लोग शर्मिंदा होने के बजाय इस घटना के खिलाफ इंसाफ की आवाज बुलन्द करने वालों को ही सोशल मीडिया पर संघी ट्रोलरों की तरह लगातार ट्रोल कर रहे हैं। उनका मनोबल इस कदर बढ़ा हुआ है कि उनके घृणित रवैये से पूरे छात्र और नागरिक समाज में आपकी पार्टी की घनघोर बदनामी हो रही है।
आपको घटना की वास्तविक वजह से अवगत कराना हम अपना जरूरी फर्ज मानते हैं। इस घटना के पीछे विश्वविद्यालय में भ्रष्टाचार के आरोपी टीएनबी कॉलेज भागलपुर के प्रिंसिपल संजय चौधरी हैं, जिनके खिलाफ हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. योगेन्द्र महतो पिछले समय से ही आवाज बुलंद करते रहे हैं।
संजय चौधरी छपरा विश्वविद्यालय में बिना पीएचडी उपाधि के ही फर्जीवाड़ा करते हुए नीतीश-सुशील मोदी राज में वर्ष 2009 में प्रिंसिपल बन गए थे। जबकि इस तथ्य से आप भी वाकिफ होंगे कि डिग्री कॉलेज का प्रिंसिपल बनने के लिए पीएचडी की उपाधि न्यूनतम पात्रता होती है। छपरा विश्वविद्यालय द्वारा गठित जांच कमेटी ने इस मामले में उन्हें दोषी भी करार दिया। मामला खुलता देख अपनी राजनीतिक पहुंच के बल पर वर्ष 2015 में संजय चौधरी ने भागलपुर विश्वविद्यालय में अपना स्थानांतरण करा लिया।
यहां आने पर भी इनका कुकर्म जारी रहा और दो कॉलेजों में प्रिंसिपल रहते हुए इन्होंने भ्रष्टाचार में लाखों की हेराफेरी की, जिसकी पुष्टि भागलपुर विश्वविद्यालय द्वारा गठित जांच कमिटी की जांच में भी हो चुकी है। डॉ. योगेन्द्र इन कमिटियों के सदस्य भी रहे हैं। इस भ्र्ष्टाचार की शिकायत राज्य के महामहिम राज्यपाल से भी की गई है किंतु संजय चौधरी का राजनीतिक रसूख देखिए कि इसके बाद भी पिछले दिनों ये विश्वविद्यालय के प्रभारी कुलपति तक बनाये गए थे।
डॉ. योगेन्द्र ने उस वक्त भी एक भ्रष्ट व्यक्ति को कुलपति का प्रभार दिए जाने का मुखर होकर विरोध किया था। किंतु आपकी पार्टी की छात्र इकाई उस वक्त भी इस मामले पर चुप्पी साधे हुए थी। आपको उनसे पूछना चाहिए कि इस चुप्पी की वजह क्या थी?
आपको लग सकता है कि यहां संजय चौधरी के मामले का बेवजह क्यों जिक्र किया गया है। ऐसा इसलिए किया गया है क्योंकि इस घटना के तार संजय चौधरी से गहरे तौर पर जुड़े हुए हैं। बिहार बंदी के दरम्यान अंग क्रांति सेना नामक एक स्थानीय संगठन जोकि आरक्षण व सामाजिक न्याय का घनघोर विरोधी रहा है और सवर्ण आरक्षण के समर्थन में मुखर होकर जुलूस तक निकालता रहा है. वह संगठन बिहार बन्द को समर्थन देते हुए पूर्व साजिश के तहत छात्र राजद के साथ शामिल हो गया और हिंदी विभाग को जान-बूझकर टारगेट किया गया।
यह संगठन उन्हीं भ्रष्टाचार के दोषी प्रिंसिपल संजय चौधरी के लिए जातिवादी गठजोड़ के आधार पर काम करता है। इस संगठन के नेता के उकसावे में आकर आपके दल के छात्र नेताओं ने हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष और शिक्षक से संजय चौधरी के खिलाफ आवाज उठाने का बदला चुकाने में साथ दिया है। उन नेताओं की पिछले दिनों की एक्टिविटी से साफ जाहिर होता कि सम्भवतः इन्हें भी संजय चौधरी ने मैनेज कर लिया है।
यदि ये छात्र नेता आपके दल और सामाजिक न्याय के सच्चे सिपाही होते तो संजय चौधरी के संगीन मामले को आपसे विधानसभा में उठाने के लिए जरूर कहते। यह भ्रष्टाचार मुक्त बिहार बनाने का दावा करने वाली राज्य सरकार को एक्सपोज करने के लिहाज से भी एक और जरूरी व गम्भीर मुद्दा था। किंतु शिक्षण संस्थानों में व्याप्त ऐसे संगीन भ्र्ष्टाचार के दोषी के खिलाफ आंदोलन के बजाय छात्र राजद की भागलपुर विश्वविद्यालय इकाई ने मौन समर्थन देने का रास्ता चुनते हुए इसके खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले पर ही हमला बोल दिया है।
इस पूरे घटनाक्रम को आपके समक्ष रखते हुए हम सभी यह उम्मीद करते हैं कि एक निर्दोष शिक्षक के साथ मारपीट करने वालों के खिलाफ आप अवश्य मुंह खोलेंगे और तत्काल आवश्यक कार्रवाई करेंगे। राज्य में बदलाव-विकास की जो बातें आप कर रहे हैं, यदि वह हवा-हवाई नहीं है तो इस संगीन मामले पर आप अविलंब संज्ञान लेंगे। मामले को हुए 12 दिन बीत चुके हैं, किन्तु आपकी तरफ से अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आना काफी खेदजनक है।
आप भी इस बात को महसूस करते होंगे कि विधानसभा में राज्य सरकार द्वारा कराई गई शर्मनाक घटना से छात्र-नौजवानों, बुद्धिजीवियों व आम नागरिकों में राज्य सरकार के खिलाफ जो आक्रोश पैदा हुआ था, छात्र राजद द्वारा शिक्षक पिटाई का मामला सामने आने की वजह से उसका मिट्टी पलीद हो रही है। आप रात-दिन एक करके जनता के मुद्दे उठा रहे हैं किन्तु जब तक आपकी पार्टी के भीतर ही इस तरह के सामाजिक न्याय विरोधी लोग होंगे तो आपकी कमाई हुई सारी मेहनत पर पल भर में इसी तरह पानी फेरते रहेंगे।
ऐसे में आपसे निवेदन है कि इस घटना पर अपना पक्ष तय करें, जरूरी कार्रवाई करें। बेहतर तो यह होगा कि इस मामले में शिक्षक के न्याय की लड़ाई का आप स्वयं नेतृत्व करें और दोषियों को सजा दिलाने के लिए आगे आएं। बुद्ध की धरती बिहार और यहां का बिहारी समाज किसी निर्दोष शिक्षक का इस कदर अपमान करने वाले को कतई माफ नहीं करेगा।
निवेदक-
तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के आम छात्र व छात्राएं…