‘टूलकिट’. किसान आंदोलन के समर्थन में स्वीडन की फ़ेमस चाइल्ड एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग के ट्वीट के बाद से यह शब्द सोशल मीडिया पर सुर्खियों में है. पिछले 4-5 दिन से हर कोई इसके बारे में बात कर रहा है. इस ‘टूलकिट’ की वजह से दिल्ली पुलिस ग्रेटा पर एफआईआर तक दर्ज कर चुकी है और अब पूरे मामले की जांच खालिस्तानी एंगल से कर रही है. तो आइए आपको बताते हैं कि ‘टूलकिट’ होता है क्या है?
‘टूलकिट’ होता क्या है?
दरअसल अभी के समय में किसी भी बड़े आंदोलन को सिस्टमैटिक ढंग से संचालित करने का एक डिजिटल वर्जन है ‘टूलकिट’. इसमें आंदोलन/ मुहिम को आगे बढ़ाने की रूपरेखा बताई जाती है. या आप ऐसे समझिए की पर्ची या पोस्टर का डिजिटल वर्जन है ‘टूलकिट’. जैसे पर्ची या पोस्टर में आंदोलन या किसी भी मुहिम के लिए स्थान, दिनांक, स्लोगन, उद्देश्य लिखा होता है, वैसी ही चीज ‘टूलकिट’ में लिखी होती है.
किसान आंदोलन से पहले अमेरिका का ‘ब्लैक लाइव्स मैटर‘ हो, ‘एंटी–लॉकडाउन प्रोटेस्ट‘ हो, पर्यावरण से जुड़ा ‘क्लाइमेट स्ट्राइक कैंपेन‘ हो इन सारे आंदोलनों में लोगों को जोड़ने के लिए ‘टूलकिट’ का इस्तेमाल किया गया था. या पिछले साल अपनी बेहतरीन रणनीति की वजह से दुनिया भर का ध्यान खींचने वाला हांगकांग का विरोध-प्रदर्शन. प्रदर्शनकारियों ने पुलिस की रणनीति को तोड़ने के लिए बड़े पैमाने पर ‘टूलकिट’ का इस्तेमाल किया था.
इस विवादित ‘टूलकिट’ को किसने बनाया?
ग्रेटा ने ज़िसे टूलकिट को शेयर किया था, उसे बनाने वाले शख़्स का नाम एमओ धालीवाल है. इनका जन्म कनाडा में हुआ है. धालीवाल खालिस्तानी समर्थक संगठन पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन से जुड़े हैं. इसके अलावा धालीवाल वैंकूवर में स्थापित एक डिजिटल ब्रांडिंग रचनात्मक एजेंसी, स्काईट्रैक के सह–संस्थापक और मुख्य रणनीतिकार भी हैं. 2020 के अपने एक सोशल मीडिया पोस्ट में धालीवाल ख़ुद को खालिस्तानी बताते हैं.
और लिखते हैं कि “मैं एक खालिस्तानी हूं. आप शायद मेरे बारे में यह नहीं जानते होंगे. क्यों? क्योंकि खालिस्ताान एक विचार है. खालिस्तान एक जीता जागता, सांस लेता आंदोलन है.” कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार 26 जनवरी के दिन का धालीवाल का एक वीडियो भी वायरल हो रहा है, जिसमें वो किसान आंदोलन को लेकर काफ़ी आपत्तिजनक भाषण दे रहें हैं.