देश के सबसे बड़े राज्य (जनसंख्या के लिहाज से) में कुम्भ मेले की शुरुआत हो चुकी है. दो दिनों (14 और 15 जनवरी) में ही दो करोड़ लोग संगम के जल में डुबकी लगा चुके है. शाही स्नान से शुरू होने वाला यह क्रम 5 मार्च तक चलेगा. देश-दुनिया से अलग-अलग जाति, पंथ और संप्रदाय के लोग यहां आएंगे-जाएंगे. उम्मीद लगाई जा रही है कि लगभग सोलह करोड़ लोग संगम में डुबकी लगाएंगे. ऐसे में सियासतदां इस मौके को भुनाने और सबकी नजर में आने का कोई मौका नहीं चूकना चाहते. कहने का मतलब है कि जैसे-जैसे सूर्य उत्तर दिशा की ओर बढ़ेगा वैसे-वैसे देश का सियासी पारा चढ़ता जाएगा…
अमरूदों के लिए मशहूर शहर के कटरा बाजार में जब एक अमरूद बेचने वाले से मैंने यूं ही चलते हुए पूछा कि भैया इस अमरूद को क्या कहेंगे? इलाहाबादी कि प्रयागराजी? तो अमरूद वाला बोला कि भैया टेस्ट तो वही है. नाम चाहे जो ले लो. मैं सोचने लगा कि सही तो है. नाम में क्या रखा है? लेकिन उत्तर प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री के लिए नामों में बहुत कुछ रखा है. फैजाबाद अब अयोध्या है. इलाहाबाद अब प्रयागराज है. इतना ही नहीं. अब अर्धकुम्भ भी दिव्य कुम्भ भव्य कुम्भ है.
अर्ध कुम्भ को कुम्भ कहकर प्रचारित करने पर संगम किनारे रहने वाले पंडा राजेश कुमार भारद्वाज कहते हैं कि कोई ऐसे कैसे किसी चीज का नाम बदल देगा? हर चीज किसी विधान से होती है. बताइए, योगी जी ने अर्ध कुम्भ को कुम्भ कह दिया. मोदी जी भी तो यहां आए थे. उन्होंने तो अर्ध कुम्भ ही कहा. वो भी तो इसे महा कुम्भ कह सकते थे लेकिन उन्होंने तो ऐसा नहीं कहा. कुछ सोच समझकर ही तो नहीं कहा होगा. अर्ध कुम्भ हर छ: साल में लगता है, महाकुम्भ हर बारह साल में लगता है. मामला हाईकोर्ट में है. देखिए क्या होता है…
अर्ध कुम्भ को कुम्भ कहे जाने का मामला भले ही हाईकोर्ट में हो लेकिन इलाहाबाद अब प्रयागराज हो चुका है. पूरे शहर में काम चल रहा है. कहीं तोड़फोड़ तो कहीं खुदाई. तोड़फोड़ और खुदाई पर इलाहाबाद में सिविल सर्विसेज़ की तैयारी करने वाले ज्ञानू प्रताप सिंह कहते हैं कि इलाहाबाद का तो जैसे कायाकल्प हो गया है. शाम को आदमी संकरी सड़कें देखकर गया और सुबह सड़कें चौड़ी हो गईं. दीवारें रंग गईं. अतिक्रमण कर चुके लोगों के घर भी तोड़े जा रहे हैं. रोजाना आने-जाने वाले चौराहे इतने चौड़े हो गए हैं कि आदमी भटक जा रहा है. ऐसा कुम्भ शायद देवताओं के समय हुआ होगा या फिर अभी हो रहा है.
ज्ञानू की कही गई बातों में दम तो है. शहर के मुख्य रेलवे स्टेशनों के दीवारों पर पेंटिंग्स बन गई हैं. शहर की आम-ओ-खास सड़कें चौड़ी हो गई हैं. यूनिवर्सिटी के हॉस्टलों की बाउंड्री के साथ ही कई इमारतों पर भी पेंटिंग्स बनाई गई हैं. इलाहाबाद से प्रयागराज बनने की प्रक्रिया में बहुत कुछ बदल गया है.
कुम्भ का बजट पिछले बार से तीन गुना अधिक
शहर में होने वाले बदलाव हेतु केन्द्र और राज्य सरकार ने अपने खजाने का मुंह एकदम से खोल दिया है. भाजपा सरकार के लिए कुम्भ उनके एजेंडे का हिस्सा है. पीएम नरेन्द्र मोदी जहां एक बार आकर गए हैं और दुबारा आने वाले हैं. वहीं सीएम का तो एक पैर जैसे कुम्भ में ही है. अगर आंकड़ों की ही बात करें तो इस वर्ष कुम्भ का बजट (4200 करोड़) बीते बार के कुम्भ से तीन गुना है. कुम्भ मेले के मुख्य मार्गों पर इस बात के पोस्टर्स भी लगे हैं.
कुम्भ पहुंचने के लिए विशेष शटल व्यवस्था
कुम्भ आने-जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए विशेष शटल बस सर्विस की शुरुआत की गई है. इस व्यवस्था के तहत लगभग 500 बसें सड़कों पर दौड़ रही हैं. किन्हीं विशेष मौकों पर तो इनमें किराया भी नहीं लग रहा. श्रद्धालुओं के लिए सारी व्यवस्था किंग साइज है.
स्वच्छ भारत मिशन पर विशेष जोर
कुम्भ में घूमते हुए आप इस बात पर जरूर गौर करेंगे कि इस बार टॉयलेट्स पर विशेष जोर दिया गया है. कुम्भ में इस बीच एक लाख से अधिक टॉयलेट्स बने हैं. महिलाओं के लिए पिंक टॉयलेट्स बने हैं. नमामि गंगे का भी काम कई जगह दिखता है. चाहे शहर में रंगी गईं दीवारें या फिर डस्टबीन. नमामि गंगे हर जगह दिखता है.
इलाहाबाद कि प्रयागराज?
जब हमने इलाहाबाद में पैदा हुए और कुम्भ मेले में फोटोग्राफी कर रहे अभिषेक से बात की तो वे नाम बदलने की कवायद से नाखुश दिखे. हालांकि वे भाजपा सरकार द्वारा शहर को लेकर किए जा रहे काम से पूरी तरह खुश हैं. वे कहते हैं कि, देखिए मैं 22 साल का हूं और दिल्ली में पढ़ रहा हूं. इस बीच अपने शहर लौटा हूं. शहर में काम हो रहा है और हमें काम करने वाली सरकार चाहिए.
शहर और कुम्भ घूमते हुए इस बात के स्पष्ट संकेत मिलते हैं कि शहर के सुंदरीकरण के सहारे अपने भावी वोटरों को साधने की पुरजोर कोशिश हो रही है. शहर में ऐसे कई जगह देखने को मिल जाएंगे. जहां लोग पेंटिग्स को ठहरकर देखें और ठीक उन्हीं जगहों पर 2019 के आम चुनाव के लिए भाजपा के पक्ष में वोट देने की अपील भी चस्पा कर दी गई है.
लोगों को उनके पुरातन वैभव और मिथकीय कहानियों से जोड़ने की कोशिशें हो रही हैं. पूरे शहर और कुम्भ में जगह-जगह एलसीडी स्क्रीन्स लगी हैं. नरेन्द्र मोदी और योगी आदित्यनाथ इनके माध्यम से जनता से सीधे रूबरू हैं. अब ये तो आने वाला समय ही बताएगा कि भाजपा इसमें कितने सफल हो पाते हैं…