गुस्तावो का धीमा–धीमा संगीत सुनते हुए मैं नाइट शिफ्ट के बाद घर जा रही थी. यह बारिश के बाद की रात थी और हल्की–हल्की बूंदें अभी भी गिर रही थी. मेरी नजर सड़क के बीचों–बीच जाकर टिक गई. फोन पर समय देखा तो रात के 1 बजकर 13 मिनट हो रहे थे. सड़क पर एक कुत्ता और एक कौआ साथ बैठे हुए थे. पहले तो मुझे इतनी देर रात कौआ के होने पर ही विश्वास नहीं हो रहा था और वह भी कुत्ते के साथ. मैं सोचने लगी कि इन दोनों में क्या बातचीत हो रही होगी? हो सकता है कि ये इस लुटियन दिल्ली की सड़क पर बैठकर कुछ सोच रहे हों कि यह देश किधर जा रहा है?
मेरे दिलो–दिमाग ने तभी मुझसे कहा–अरे स्नेहा, बस भी करो तुम्हारी शिफ्ट खत्म हो चुकी है और देश किधर भी जाए, उसका ठेका तुम्हारे पास नहीं है. यहीं पास में पीएम साहब का घर है. मन करे तो मिल आओ एक बार और पूछ लो कि देश किधर जा रहा है.
फिर दूसरा सवाल आया, हो सकता है इनमें से किसी का दिल टूटा हो?
लेकिन फिर मन ने जोरदार तरीके से डांटा. बेटा अपना दिल तो तुमसे संभल नहीं रहा और दूसरों के दिल के टूटने की बड़ी चिंता हो रही. वहां गांव में लोगों ने शादी की अफवाह उड़ा रखी है. वह भी तीन तस्वीरों के साथ. जिसमें दो तस्वीरों में लड़के अलग हैं और तीसरे में लड़की भी तुम नहीं हो. पहले उसका सोचो कि जवाब क्या दोगी? यथार्थवादी बनो. इतनी रात में कुत्ता और कौआ बैठे हैं तो कुछ काम की बात हो रही होगी. तुम्हारी तरह उनके पास नेटफ्लिक्स नहीं है कि पाब्लो एस्कोबार के चक्कर में अपनी दो छुट्टियां तबाह कर ले.
हो सकता है कि दोनों बहुत अकेले हों:
हां, यह हो सकता है. आज कल अकेले लोगों की संख्या बढ़ गई है. लोग अब अकेले खाने भी लगे हैं. अकेलापन बहुत क्रूर किस्म की चीज है. लोग कहते हैं कि वह अकेलेपन का आनंद लेने लगे हैं. यह सच भी है एक हद तक. लेकिन यह उतना ही सही है जितना यह कहना कि किसी के साथ रहकर अकेलापन नहीं लगता. हम अपना दायरा चाहते हैं, अकेलापन नहीं. यह कौआ भी अपना दायरा चाहता होगा और यह कुत्ता भी.
हो सकता है कि दिल्ली की बारिश में घूमने निकले हों:
सबसे बड़ी वजह यही हो सकती है. दिल्ली में बारिश तो हो नहीं रही है, सोचा होगा कि जो कुछ बूंदे शरीर पर पड़ जाए. वही सही है. दोनों कह रहे होंगे कि हमसे पूछकर तो पर्यावरण नियम बनते नहीं हैं. हमसे पूछकर तो पानी गंदा किया नहीं जाता. हमसे पूछकर तो प्रदूषण फैलाया नहीं जाता लेकिन पानी नहीं बरसने का असर हम पर भी तो होता है. यह इंसान कभी नहीं सुधरेंगे. सेल्फिश कहीं के. हमेशा खुद के लिए सोचना है. धरती पर जितने प्राणी थे कायदे से संसाधनों का बंटवारा सबमें बराबर होना चाहिए था लेकिन देखो इन्हें सब चाहिए. लेकिन छोड़ो, इन्होंने आपस में भी कौन सा सही बंटवारा किया है. कोई पानी भी ब्रांडेड पीता है और किसी को पानी ही नसीब नहीं है. जा रे दुनिया….
हो सकता है कि कौआ और कुत्ता कुछ भी नहीं सोच रहे हों क्योंकि सोचने का ठेका इंसानों के पास है! अब रात बहुत हो गई है नार्कोज का कैली कार्टेल कल देखूंगी.