बिहार विधानसभा के बजट सत्र की कार्यवाही में शामिल होने के लिए नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ट्रैक्टर पर सवार होकर पहुंचे. मसअला था पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतें और बढ़ती महंगाई का विरोध. ट्रैक्टर वे खुद चला रहे थे और उनके साथ ट्रैक्टर पर दो लोग अगल-बगल बैठे थे. बांयी ओर बैठे शख्स को तो कमोबेस सभी पहचानते हैं, लेकिन दांयी ओर ‘मुसलमानी टोपी’ में बैठे शख्स को देखने व जानने की सहज उत्कंठा बहुतों के मन में जगी.
वैसे तो न तेजस्वी यादव का पटना की सड़कों पर ट्रैक्टर चलाना नया है और न ही उनके इर्द-गिर्द मुसलमानी टोपी में दिखने वाली शख्सियतों को दिखना, लेकिन इस बार दल के ही एक शख्स को ट्रैक्टर पर अपनी दांयी ओर बैठाने के कई सियासी मायने तो जरूर हैं. तिस पर से एक ऐसे शख्स को जिसे पटना के सियासी गलियारों में अधिक लोग न जानते हों. जिसे मीडियाकर्मी भी न पहचान पाए हों. ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि तमाम खबरिया चैनलों और वेबसाइटों ने ‘मुसलमानी टोपी’ और मास्क लगाए ट्रैक्टर पर बैठे शख्स के बारे में अब तक कुछ खास जानकारी नहीं दी है. तमाम वेबसाइटें में तेजस्वी के साथ राजद के चुनिंदा लोगों के बैठे होने का ही जिक्र करती रही हैं.
तो हम भी आपकी इस उत्कंठा और जिज्ञासा को अब अधिक विस्तार नहीं दे रहे. तेजस्वी यादव के साथ 22 तारीख को ट्रैक्टर पर उनकी दांयी तरफ बैठकर विधानसभा जाने वाले शख्स का नाम है सऊद असरार नदवी. सीमांचल के ठाकुरगंज विधानसभा के प्रतिनिधि. पहली बार विधानसभा पहुंचे हैं. राष्ट्रीय जनता दल की ओर से पटना में की जाने वाली प्रेस वार्ताओं और किन्हीं अहम कार्यक्रमों में अब तक उनकी मौजूदगी को खास तवज्जो भी नहीं मिली है. ऐसे में अचानक से तेजस्वी के साथ ट्रैक्टर पर सवार हो जाना, और वो भी दांयी तरफ ने बहुतों के कान खड़े कर दिए हैं.
असरारुल हक़ क़ासमी के मंझले बेटे हैं सऊद असरार नदवी…
गौरतलब है कि राजधानी के सियासी गलियारों के लिहाज से सऊद असरार नदवी भले ही चर्चित चेहरे न हों, लेकिन सीमांचल और खास तौर पर किशनगंज की राजनीति को जानने वाले जानते हैं कि मौलाना असरारुल हक़ क़ासमी के बेटे होने के क्या मायने हैं. मौलाना असरारुल हक़ क़ासमी आजीवन कांग्रेसी रहे. दो बार किशनगंज लोकसभा के प्रतिनिधि चुने गए. पहली बार साल 2009 और दूसरा मौका था साल 2014. देश भर में नरेन्द्र मोदी की लहर और उभाऱ के बीच भी न वे सिर्फ दुबारा अपनी सीट जीतने में सफल रहे बल्कि सूबे में सबसे अधिक वोट पाने वाले प्रतिनिधि बने. बतौर प्रतिनिधि असरारुल हक़ क़ासमी को इसलिए भी याद किया जाता है क्योंकि इनके कार्यकाल के दौरान किशनगंज में ‘अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय’ की नींव पड़ी.
विधानसभा चुनाव से पहले राजद में शामिल हुए सऊद असरार नदवी
यहां हम आपको बताते चलें कि मौलाना असरारुल हक़ क़ासमी के इंतकाल के बाद सऊद असरार नदवी कांग्रेस से टिकट की मांग करते रहे, लेकिन टिकट उनके बजाय मोहम्मद जावेद को मिल गया. चूंकि मौलाना असरारुल हक़ क़ासमी का इंतकाल उनके सांसद रहते हुए साल 2018 में हो गया था. परिवार के लोग उनकी विरासत और सीट पर दावा कर रहे थे लेकिन साल 2019 के आम चुनाव में कांग्रेस ने मौलाना के परिवार के बजाय मोहम्मद जावेद को किशनगंज से अपना सांसदी का उम्मीदवार बनाया और वे बतौर प्रतिनिधि चुन भी लिए गए. तिस पर से नाराजगी व मायूसी इस बात की भी थी कि मोहम्मद जावेद की किशनगंज विधानसभा की खाली हुई सीट पर कांग्रेस ने उन्हें टिकट देने के बजाय मोहम्मद जावेद की मां को उम्मीदवार बनाया गया.
आश्वासन और वादे पर राजद का थामा दामन
सऊद असरार नदवी ने राजद की ओर से टिकट के ऑफर और ज्वाइनिंग के सवाल पर एक खबरिया चैनल से बातचीत में इस बात को स्वीकारा कि वे कांग्रेस से मायूस होकर राजद के साथ गए. राजद के लोग ऐसी तमाम कोशिशें कर रहे थे कि वे कांग्रेस का साथ छोड़कर राजद का दामन थाम लें. खुद तेजस्वी यादव ने भी इस सिलसिले में उनसे बात की. वे इस वादे पर ही राजद के साथ गए कि उन्हें चुनाव लड़ने के लिए राजद अपना टिकट देगा. राजद ने वैसा किया भी, और वे किशनगंज जिले की ठाकुरगंज विधानसभा में कड़े मुकाबले के बीच जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं. क्योंकि ठाकुरगंज विधानसभा में उन्होंने जद (यू) के सीटिंग विधायक नौशाद आलम को हराया.
AIMIM की चुनौती से पार पाने की कोशिश!
यहां हम आपको यह भी बताते चलें कि असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने सीमांचल के इलाके में खासी खलबली मचाई है. MIM के पांच विधायक सीमांचल के इलाके से ही जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं. MIM के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान सीमांचल के तमाम मसअलों पर सदन के भीतर और बाहर मुखर भी हैं. उन्हें मीडिया पर्याप्त तवज्जो भी दे रहा है, और MIM की सीमांचल में मजबूत दखल राजद और महागठबंधन के खेमे को तो खास तौर पर खटक रही होगी. ऐसा भी माना जा रहा है कि सीमांचल में MIM के दखल और उभार ने महागठबंधन के सामने सत्ता की सजी हुई थाल को दूर सरका दिया. हाथ लगती सत्ता मुंह तक न आ सकी. तिस पर से ‘माय – MY’ मुस्लिम यादव समीकरण पर अपेक्षाकृत निर्भर रहने वाले राजद के लिए MIM एक और चुनौती तो साबित हो ही रहा. ऐसे में सऊद असरार नदवी का एकदम से तेजस्वी के साथ ट्रैक्टर पर दिखने, और दांयी तरफ बैठकर विधानसभा तक जाने के कई सियासी मायने तो जरूर हैं/होंगे.
बादबाकी अंत में यही कहना है कि हमारी दुनिया में प्रतीकों का बड़ा महत्व है, और बात गर सियासत की हो रही हो तो फिर यह महत्व एकदम से बढ़ जाता है. सियासी लोग प्रतीकों के खेल को बखूबी जानते हैं. कोई टीका और कलावे के इस्तेमाल को बखूबी समझता है, तो कोई जालीदार टोपी और काफिये में मौके-बे-मौके दिख जाता है-
स्टोरी और हमारी कोशिश अच्छी लगी हो तो इसे आगे बढ़ाते चलें. हमारी छोटी सी टीम का भी उत्साह बना रहता है…