”कुर्सी है तुम्हारा जनाज़ा तो नहीं है, कुछ कर नहीं सकते तो उतर क्यों नहीं जाते”

”कुर्सी है तुम्हारा जनाज़ा तो नहीं है, कुछ कर नहीं सकते तो उतर क्यों नहीं जाते”

 

डियर नीतीश कुमार और सुशील कुमार मोदी

यह लिखते हुए बहुत दुख हो रहा है कि दुनिया की सारी बेशर्मी एक तरफ और आप दोनों की बेशर्मी एक तरफ। ‘बेशर्मी’ शब्द का इस्तेमाल अपने राज्य के मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री के लिए करना बुरा तो है लेकिन अपने राज्य की जनता को इस मनोदशा तक ढकेल देना उससे भी बुरा है, जिसका अंदाजा ट्विटर पर अखबार में छपे बयानों की कटिंग लगाकर तो समझ नहीं ही आ सकता है। सच कहूं तो खुद पर भी गुस्सा है कि अब भी क्यों उम्मीद है…

हां तो कहानी ये है कि गुड़गांव में कुछ मजदूर फंसे हैं, जिनमें से कई मेरे जानने वाले हैं. वह रोज कोई न कोई लिंक भेजते हैं और कहते हैं कि यहां रजिस्ट्रेशन हो रहा है कर दो, यह हेल्पलाइन नंबर है…कॉल लग नहीं रहा, रोजगार जा चुका है…कब तक यहां रहेंगे। इसके अलावा एक और भी वजह है, मेरे घर के लोग भी दिल्ली में फंसे हैं. आप तो जानते ही हैं गांव में रहनेवाले परिवार को अगर एक कमरे में बंद रहना पड़े तो उन्हें अच्छा नहीं लगता है, वह भी तब जब कोई उच्च रक्तचाप का मरीज हो. तो हुआ यह है कि जब तक लॉकडाउन में आने-जाने का विकल्प नहीं था तो लोग फिर भी चुप बैठकर शांति से अपनी स्थिति स्वीकार कर चुके थे लेकिन जब से यह बस और ट्रेन का विकल्प आया है, वे बेसब्र हो गए हैं।

अब हालत सुनिए. दो दिन ऑफिस से छुट्टी हुई और दो दिन बोलूं तो बिहार सरकार के पोर्टलों और बिहार भवन पर दिए गए हेल्पलाइन नंबर पर कॉल करते बीत गया क्योंकि कई मजदूरों का कहना है कि अब हो नहीं पा रहा है, कब तक एक पैकेट आटा और चावल पर इस तरह से जिंदगी गुजरेगी। तो इसी सिलसिले में मेरी बात बिहार सरकार के आपदा प्रबंधन वेबसाइट पर Pratyaya Amrit-0612-2294201 पर हुई। यह चार दिन पहले की बात है, उन्होंने कहा कि बस एक-दो दिन में नंबर आ जाएगा, जहां से फंसे लोगों के निकलने के बारे में जानकारी मिलेगी। मैंने थोड़ी राहत की सांस ली और सभी लोगों के साथ यह जानकारी साझा कर दिया। फिर कहीं से एक लिंक आया, जिस पर घर जाने के संबंध में जानकारी पूछी जा रही थी, वह भी भर दिया लेकिन वह घर जाने के संबंध में ही है, ऐसा मुझे नहीं लगता लेकिन फिर भी उन कुछ मजदूरों और घर वालों की तसल्ली के लिए भर दिया।

अब कल की बात बताती हूं। सुशील कुमार मोदी जी ने कई राज्यों का लिंक ट्विटर पर शेयर किया, जहां फंसे होने की जानकारी देना था। हुआ यह कि दिल्ली के लिए दिल्ली पुलिस की वेबसाइट का लिंक दिया गया है, दिल्ली पुलिस की वेबसाइट पर बहुत देर तक माथा पच्ची किया। कुछ नहीं मिला और फिर 100 नंबर पर फोन करके पूछा तो उन्होंने कहा कि हमें इस बारे में जानकारी नहीं है। वहां दिल्ली पुलिस कंट्रोल रूम से मदद लेने के लिए कहा गया, करीब आधे घंटे तक फोन मिलाती रही नहीं लगा। और दिन भर तो बिहार भवन पर कॉल कर ही रहे थे लेकिन नहीं हुआ। मोदी जी के ट्वीट के नीचे कई मजदूर और फंसे हुए लोग ट्वीट करके कह रहे थे कि महाराष्ट्र, गुजरात और दिल्ली का लिंक काम नहीं कर रहा लेकिन उस पर कोई जवाब नहीं। यह करते-करते घंटों बीत गया। इसके बाद फिर आपदा प्रबंधन विभाग वाला नंबर लगा और जब उनसे मैंने सुशील कुमार मोदी के ट्वीट के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, ‘‘ हमें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है कि सुशील कुमार मोदी ने क्या किया और दिल्ली पुलिस क्या करेगी।’’

उन्होंने यहां तक कह दिया कि कब कौन सी ट्रेन चलेगी या नहीं चलेगी इस बार में उन्हें कोई जानकारी नहीं है। बात करते-करते लगा कि यहां गलथेथरी करने का कोई फायद नहीं होगा। वहीं बिहार से फोन आता रहा कि तुम्हें पत्रकार होकर भी कुछ पता रहता है क्या, यहां टीवी पर नंबर बता रहे हैं, तुम उस पर फोन करके बोलो। कसम से माथा इतना खराब हुआ कि मतलब दो दिन से सिर्फ हेल्पलाइन नंबर पर फोन कर रही हूं और उसका नतीजा यह है। यह पूरा राज्य किस आदमी के हवाले कर दिया गया है। इससे भी ज्यादा दिल दुखाने वाला सुशील कुमार मोदी के ट्वीट के नीचे फंसे लोगों का संदेश। वह किस लाचारी से बता रहे हैं, ‘ सर, नहीं हो पा रहा है’। यह सब दिल दुखाने वाला है।

फिर सुबह हुई। जल्दी-जल्दी ट्विटर खोला तो देखा कि मोदी जी ने सूचना एवं जनसंपर्क विभाग का ट्वीट रिट्वीट किया है, उसमें आपदा प्रबंधन और बिहार भवन वाला नंबर है। कहते हैं न आदत से मजबूर हो जाना। तो मैं वही हो गई, यही समझा जाए। फिर से मैंने सभी नंबर पर कम से कम आधे घंटे तक कॉल किया और परिणाम यह था, ‘‘ इस रुट की सभी लाइन व्यस्त हैं या फिर टिंग, टिंग, टिंग…..’ यह है हालत हमारे यहां की।

नीतीश जी आपका एक-एक हजार रुपया कब का समाप्त हो चुका है। गुड़गांव में फंसे मजदूर कह रहे हैं कि अगर अब भी नहीं निकाला गया तो उनका जीवन तबाह हो जाएगा क्योंकि इनमें से कई ऐसे थे, जो गेहूं की कटाई के लिए घर भी नहीं जा सके और फसल लगभग तबाह हो गई। कई ऐसे हैं जो कमाने के लिए बस आए ही थे और लॉकडाउन हो गया। यह सब कौन सोचेगा, मैं या आप? एक शेर आपके सम्मान में पेश कर  रहीं हूं क्योंकि आप दोनों को देखकर वही याद आ रहा है और आपके बाकी मंत्रियों संतरियों के लिए भी…

”कुर्सी है तुम्हारा जनाज़ा तो नहीं है

कुछ कर नहीं सकते तो उतर क्यों नहीं जाते”