मिट्टी के घर में एक छोटी सी खिड़की है. उसमें से अंदर झांकने की कोशिश करती हूं. कुछ नहीं दिखता है. बाहर कुछ टूटी हुई लाल रंग की चुड़ियां बारिश के बाद मिट्टी में धस गई हैं. टीन के चदरे वाले दरवाजे पर ताला लगा है. कुछ महीने पहले सनोज चौधरी इसी छोटे से घर में नीचे सो रहे थे. घर काफी छोटा था तो बिस्तर भर की जगह भी मुश्किल से ही बच पाती थी तो बच्चों को ही चौकी पर सुलाते थे ताकि कीड़े–मकौड़े के काटने से उन्हें बचा सके. एक पिता अपने बच्चों की रक्षा के लिए हर संभव कोशिशें करता है. सुबह–सुबह सनोज को लगने लगा कि रात उसे किसी सांप ने काट लिया है और बाद में कुछ पता चल पाता कि सनोज की मौत हो गई.
कुर्मी जाति से ताल्लुक रखनेवाले सनोज मोकरम पंचायत के पूर्बी पट्टी के रहनेवाले थे.
मोकरम पंचायत की रहनेवाली और सनोज की पड़ोसी बिगना देवी मुझे सनोज के बारे में बताते हुए रोने लगती हैं. सनोज उनका पड़ोसी और रिश्तेदार था, दोनों ही पड़ोसी अपने मिट्टी के घर को पक्का बनाने के लिए प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत पैसे मिलने का रास्ता देख रहे थे लेकिन सनोज चला गया. बिगना देवी से सनोज की पत्नी के बारे में पूछती हूं तो पता चलता है कि वह अपने मायके में है.
बिगना देवी बताती हैं कि सनोज के तीन बच्चे हैं. दो लड़की और एक लड़का. किसी तरह से मेहनत–मजदूरी करके परिवार का खर्चा चलता था और अभी की मजदूरी से घर चलाना मुश्किल था और अकेले भी यहां इस उजाड़ में क्या करती इसलिए वह (पूसा) अपने मायके में हैं. मैं पूछती हूं कि सनोज कितने साल का होगा तो कोई 25 साल बताता है तो कोई 30 साल बताता है. जब उसकी पत्नी के उम्र के बारे में पूछती हूं तो औरतें उन दोनों की शादी को याद करने लगती हैं कि जब शादी होकर वह आई थी तब कितने साल की रही होगी! कोई बच्चे की उम्र का अंदाजा लगाते हुए पुष्पा के उम्र के बारे में बात करती है लेकिन न तो सनोज और न ही पूसा के उम्र पर लोग एकमत हो पाते हैं.
मैं महिलाओं से पूछती हूं कि क्या सनोज को सीधे अस्पताल ले जाया गया था या झाड़–फूक के चक्कर में पड़ गए थे, तो एक औरत कहती है कि ठीक से तो यह भी नहीं पता चल पाया कि उसे किसी सांप ने ही काटा था या कुछ और ने. लेकिन झाड़-फूक कराने की बात कुछ लोग स्वीकार करते हैं. उनका कहना था कि सुबह उठा तो अंदाजा लगा कि हाथ में कुछ काट लिया, यहां सांप घूमते दिखते हैं और लक्षण भी वैसा ही था तो माना गया कि सांप ने ही काटा था. मुंह से झाग भी निकल रहा था.
मैं जब जानना चाहती हूं कि सनोज को अस्पताल लेकर गए थे तो डॉक्टर ने जांच करके कुछ तो बताया होगा न? इसके बारे में वहां खड़ी महिलाएं कहती हैं कि उतना तो पता नहीं लेकिन जब तक उसे अस्पताल ले गए थे तब तक देर हो चुकी थी और कुछ घंटे बाद ही उसकी मौत हो गई. इस बारे में मुआवजे के लिए जब मैंने मोकरम मुखिया चट्टान सिंह से बात की तो वह कहते हैं कि कोशिश में तो लगे हुए हैं लेकिन उम्मीद कम ही है कि आपदा विभाग से कुछ मिल पाए क्योंकि वह पहले भी आपदा विभाग से कुछ मामलों में गुहार लगा चुके हैं लेकिन बात बनी नहीं.
बिगना देवी बताती हैं कि सनोज या उसकी पत्नी की मनरेगा की कुछ मजदूरी भी बाकी है. वह भी मिल जाए तो परिवार के लिए अच्छा रहे. आंकड़ों की मानें तो बिहार में प्रति साल करीब 4,500 लोगों की मौत सांप काटने से हो जाती है और मरनेवालों में से ज्यादातर गरीब परिवारों से आते हैं. सांप काटने के बाद क्या करें इसको लेकर जागरूकता न के बराबर है. वहीं कई बार ऐसा होता है कि लोग सांप काटने पर अस्पताल नहीं जाते हैं, झाड़–फूंक में लग जाते हैं. और तब तक बहुत देर हो जाती है. गांवों में जो स्वास्थ्य केंद्र हैं, वह या तो खुलते नहीं हैं और खुलते भी हैं तो वहां जरूरी दवाइयों और उपकरणों का अकाल रहता है.
‘आज तक’ की एक खबर के मुताबिक बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने विधानसभा में एक प्रश्न के जवाब में कहा था कि जंगल में रहनेवाले किसी भी जानवर के काटने से हुई मौत पर वन एवं पर्यावरण विभाग पीड़ित द्वारा पीड़ित परिवार को पांच लाख रुपये का मुआवजा देने का प्रवाधन है. उन्होंने कहा कि बीते पांच वर्षों में हालांकि किसी भी व्यक्ति ने मुआवजे के लिए दावा नहीं किया है. यह राशि तब ही पीड़ित परिवार को दी जाती है जब मृतक का पोस्टमार्टम रिपोर्ट हो और उसका सत्यापन हो.