डॉक्टर भीम राव आंबेकर ने पांच फरवरी 1951 को हिंदू कोड बिल संसद में पेश किया था. यह वह दौर था जब समाज में महिला अधिकारों की चर्चा न के बराबर होती थी. दरअसल महिलाओं के अधिकार की जरूरत ही समाज में अप्रासंगिक सा मुद्दा था. इस दौर में हिंदू कोड बिल का विरोध संसद से सड़क तक हो चला. हिंदू कोड बिल की वजह से आंबेडकर और जवाहर लाल नेहरू को बहुतों की आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ा. यह बात हैरान करने वाली थी कि जिस मातृभूमि को आजाद कराने की लड़ाई में महिलाएं पुरुषों से पीछे नहीं रहीं लेकिन जब देश आजाद हुआ तो महिलाओं को उनका हिस्सा देने के खिलाफ आंदोलन चल पड़ा.
क्या है हिंदू कोड बिल
भारत की आजादी के बाद हिंदू धर्म में मौजूद विसंगतियों को दूर करने के लिए पांच फरवरी 1951 को भीमराव ने हिंदू कोड बिल की रुपरेखा पेश की. इस बिल के अनुसार महिलाओं को तलाक का अधिकार दिया गया. साथ ही तलाक के बाद महिलाओं को जीवन निर्वाह में आर्थिक सहायता देने के अधिकार की बात भी थी. कन्या विवाह की न्यूनतम उम्र को बढ़ाया गया. हिंदू पुरुषों को एक से अधिक विवाह पर रोक लगा दी गई. इन सब के साथ इस बिल में यह भी साफ था कि विवाह तोड़ने के लिए सात आधार को माना जाएगा. इन सात आधारों में परित्याग, धर्मांतरण, रखैल रखना या रखैल बनना, असाध्य मानसिक रोग,संक्रामक कुष्ठ रोग, संक्रामक यौन रोग और क्रूरता होने पर कोई भी व्यक्ति तलाक ले सकता था. लेकिन यह बिल तब पास नहीं हो सका.
साल 1952 में नेहरू को मिली ताकत
साल 1952 में चुनाव में जवाहरलाल नेहरू ने काफी बड़े अंतर से अपनी सीट पर जीत दर्ज की. कांग्रेस को भी पूरे देश भर में आसानी से बहुमत मिला. कांग्रेस की कुछ महिला सांसदों ने इस बिल को पारित किये जाने की इच्छा जताई. जैसे ही चुनावों के बाद संसद का गठन हुआ, नेहरू ने फिर हिंदू कोड बिल को पेश किया, जिसके बाद साल 1952 में नेहरू की सरकार ने इस बिल को लागू कराने के लिए कड़े रुख अख्तियार किए. नेहरू ने इस बिल को चार भागों में बांट कर साल 1956 तक सभी को लागू भी कर दिया. इन चारों अधिनियमों को हिन्दू अप्राप्तवयता और संरक्षकता अधिनियम, हिंदू विवाह अधिनियम, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम और हिन्दू दत्तक तथा भरण-पोषण अधिनियम के नाम से जाना जाता है.
इस बिल का आरएसएस ने किया था विरोध
साल 1949 के दिसंबर में आरएसएस ने दिल्ली के रामलीला मैदान में एक जनसभा का आयोजन किया था जहां कई वक्ताओं ने इस बिल की निंदा की. एक वक्ता ने कहा कि यह बिल हिंदू धर्म पर परमाणु बम गिराने की तरह है. वहीं किसी और ने इस बिल की तुलना करते हुए कहा कि यह औपनिवेशिक सरकार के कठोर रॉलेट एक्ट सरीखा है. उसका कहना था कि जैसे यह कानून(रॉलेट एक्ट) ब्रिटिश सरकार के पतन का कारण बना. उसी तरह यह हिंदू कोड बिल नेहरू सरकार के पतन का कारण बनेगा. इस कार्यक्रम के ठीक अगले दिन आरएसएस के कार्यकर्ताओं के एक दल ने संसद के लिए मार्च निकाला. जहां ये लोग हिंदू कोड बिल मुर्दाबाद, पंडित नेहरू मुर्दाबाद के नारे लगा रहे थे. इस प्रर्दशन में शामिल लोगों ने प्रधानमंत्री नेहरु और डॉ. आंबेडकर के पुतले जलाए और शेख अब्दुल्ला की कार में तोड़फोड़ भी की. इस बिल के एक धुर विरोधी नेता स्वामी करपात्री महाराज ने तो डॉ. आंबेडकर पर जातिगत टिप्पणियां की और कहा कि एक अछूत को उन मामलों में हस्तक्षेप का कोई अधिकार नहीं है, जो ब्राह्मणों के लिए सुरक्षित हैं.