बिस्फी 35: जहां कभी जन्मे थे मैथिल कोकिल, विकास मुद्दा नहीं…

बिस्फी 35: जहां कभी जन्मे थे मैथिल कोकिल, विकास मुद्दा नहीं…

बिहार प्रांत के मधुबनी जिले का वैसे तो खासा महत्व रहा है. चाहे पौराणिक हो, ऐतिहासिक हो, साहित्यिक हो या हाल के दिनों में अपने कला की वजह से हो, लेकिन आज हम आप सभी को जरा हटकर ले चलते हैं. इस बार हम आपको मैथिल कवि कोकिल ‘विद्यापति’ की जन्मस्थली के तौर पर मशहूर ‘बिस्फी’ और उसी नाम की विधानसभा लिए चलते हैं. बिस्फी- 35. जाहिर तौर पर कोरोना के संक्रमण और लॉकडाउन के बीच भी सूबे के भीतर चुनावी सरगर्मियां जोर मार रही हैं. सत्ता पक्ष जहां कमर कसे हुए है, वहीं विपक्ष नानुकुर करने के बावजूद भी सारी तैयारियां कर रहा है. अलग-अलग पार्टियों के भीतर टिकट की दावेदारी करने वाले नेतागण अपनी कैंपेनिंग में लगे हुए हैं. बहरहाल, हम आपको बिस्फी विधानसभा के समीकरण और मुद्दों से रूबरू करा रहे हैं.

थोड़ा पुराना थोड़ा नया…
गौरतलब है कि किसी भी विधानसभा या क्षेत्र की राजनीति और उसकी धुरी को समझने के लिए इतिहास में तो गोता लगाना ही पड़ता है. बिस्फी के लिहाज से बात करें तो देश भर में दक्षिणपंथी राजनीति के उभार के बावजूद यहां पहले कांग्रेस जीतती रही और बाद के दिनों में सीपीआई और राजद का ही बोलबाला रहा. कांग्रेस के कद्दावर नेता व दल के भीतर अल्पसंख्यक वोटों का समीकरण साधने वाले डॉ. शकील अहमद यहीं खम ठोंकते रहे हैं. सीपीआई से राजकुमार पूर्वे यहां से साल 1980 में और साल 1995 में रामचंद्र यादव चुने गए. वहीं बीते दो विधानसभा से राजद के डॉ. फैयाज़ अहमद यहां से प्रतिनिधि चुने जा रहे हैं. 2010 के विधानसभा चुनाव में भी यहां से अहमद की जीत हुई  और इसके बाद 2015 में भी यही निर्वाचित होकर विधानसभा पहुंचे थे।  इसके साथ ही आपको बताना है कि साल 2004-2005 के दौरान जब सूबे में राष्ट्रपति शासन लग गया था. तब भी यहां की जनता ने निर्दल ताल ठोंकने वाले हरिभूषण ठाकुर पर ही विश्वास जताया था.

डॉ. फयाज अहमद, विधायक (राजद)

डॉ. शकील अहमद के मार्फत कांग्रेस की बिस्फी पर रही है पकड़-
वैसे तो लालू प्रसाद के उभार और जगन्नाथ मिश्रा के पतन के साथ ही कांग्रेस का प्रभाव सूबे से कम होता गया, लेकिन मधुबनी लोकसभा और बिस्फी विधानसभा की कहानी जरा जुदा रही. डॉ. शकील अहमद की गांधी परिवार से नजदीकियों और अल्पसंख्यक चेहरा होने की वजह से कांग्रेस यहां जीवित रही. वे साल 1985 में पहली बार विधानसभा गए और साल 1998 और 2004 में मधुबनी लोकसभा के प्रतिनिधि रहे.

डॉ. शकील अहमद के कार्यकाल को बिस्फी विधानसभा का उत्थानक काल कहा जाता है. बुजुर्ग बताते हैं कि आजादी के बाद से ही लटके हुए कई सड़कों और पुलों का निर्माण इनके कार्यकाल में हुआ. वे राबड़ी देवी के मुख्यमंत्रित्व वाले सरकार में सूबे के स्वास्थ्य मंत्री भी रहे और साल 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिरने और मनमोहन सिंह की सरकार में संचार, आईटी और गृह मंत्रालय में राज्य मंत्री भी रहे.

विद्यापति की प्रतिमा

विद्यापति की विरासत को संजोना कहीं मुद्दा नहीं-
अब इस बात को बार-बार तो बताने की जरूरत नहीं कि बिस्फी विधानसभा की पहचान महाकवि विद्यापति की वजह से रही है. दुनिया बिस्फी को तब भी जानती थी. आज की तारीख में भी महाकवि की याद में देश-दुनिया के कई जगहों पर विद्यापति पर्व का आयोजन होता है. इनकी जन्म व कर्मस्थली को देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं. साहित्य और शोध से जुड़े विद्वान भी लगातार आते हैं लेकिन महाकवि की विरासत महज वोट बटोरने का जरिया भर है. बीते लोकसभा चुनाव के दौरान ही यहां भाजपा के कद्दावर राजनेता रविशंकर प्रसाद आए थे और इस जगह के विकास के लिहाज से काफी बातें कह गए, लेकिन कुछ भी धरातल पर होता नहीं दिखता. महाकवि के नाम पर बने स्मारक की स्थिति भी कुछ खास नहीं कही जा सकती. महाकवि के नाम पर बने लाइब्रेरी को भी जीर्णोद्धार की जरुरत है.

लॉकडाउन के बीच रोजगार का मसला कहीं नहीं-
वैसे तो पूरी दुनिया और देश में इस बीच कोरोना का संक्रमण है. लॉकडाउन भी है और लॉकडाउन की वजह से देश के दूसरे हिस्से में कमाई करने गया मजदूर वर्ग वापस लौटा है. सरकार उनके लिए ढेरों बातें कह रही. स्किल मैपिंग की बात की जा रही लेकिन कुछ भी होता नहीं दिखता. कभी गन्ने की खेती और अपने चीनी मिलों के लिए दूर-दूर तक चर्चित. पूरे जिले और आसपास के जिलों के किसानों के जीविका का साधन जाता रहा. हर साल इस इलाके में आने वाली बाढ़ का तांडव तो है ही, लेकिन बिस्फी या फिर कहें कि पूरे जिले का दुर्भाग्य है कि पलायन और बेरोजगारी ही यहां का स्थापित सत्य है. कोई उम्मीद भी नहीं दिखती.

तो अंत में आपको यही बताना है कि महाकवि की जन्मस्थली और कर्मस्थली के तौर पर मशहूर ‘बिस्फी’ के भीतर महाकवि की विरासत और विकास के मुद्दे गौण हैं. रोजगार पर बातें नहीं हो रहीं. बाढ़ धीरे-धीरे शाश्वत सत्य बनता जा रहा है. चीनी मिल की बातें महज हवाओं में हैं- देखिए इस बार भी कुछ होता है या नहीं?

यह स्टोरी हमें सक्षम मिश्रा ने लिखकर भेजी है. सक्षम पटना विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहे हैं. मधुबनी के ही रहने वाले हैं. – विशेष नोट- अन्य लोग भी दिलचस्प तरीके से अपने इलाके व विधानसभा क्षेत्रों की कहानी व रिपोर्ट लिखकर “द बिहार मेल” को भेज सकते हैं. पता- thebiharmail@gmail.com –