दिल्ली यूनिवर्सिटी NCWEB में पर्चा युग खत्म, गिद्ध युग शुरू

दिल्ली यूनिवर्सिटी NCWEB में पर्चा युग खत्म, गिद्ध युग शुरू

देश के बहुप्रतिष्ठित यूनिवर्सिटीज में शुमार दिल्ली यूनिवर्सिटी के नॉन कॉलेजिएट वुमेन एजुकेशन बोर्ड (NCWEB) के अतिथि अध्यापकों की नियुक्ति में पर्चा युग चल रहा था. इस बार कुलपति के आदेश पर पर्चा युग खत्म करने की पहल हुई. निर्णय हुआ कि सत्र 2018-19 में अतिथि शिक्षकों का चयन एडहॉक पैनल के हिसाब से टॉप टू बॉटम होगा. तमाम उठा-पटक और गहमा-गहमी के बाद पैनल के हिसाब से चयनित अतिथि अध्यापकों को फोन किए जाने लगे. तमाम चयनित अभ्यर्थियों को पहलेपहल तो विश्वास ही नहीं हुआ कि उनका चयन हुआ है. लगा कोई फिरकी ले रहा है. आखिर जिन अभ्यर्थियों ने बिना सिफारिश बीते छह-सात वर्षों से NCWEB का फॉर्म भरा हों, अगर उन्हें अचानक ऐसी सूचना मिलेगी कि उनका चयन हुआ है तो उन्हें ऐसा तो लग ही सकता है कि कोई मजाक कर रहा है, है कि नहीं?

बहरहाल, सत्र 2018-19 में NCWEB के अतिथि अध्यापक के रूप में ऐसे तमाम अभ्यर्थी चयनित हुए. जो तमाम योग्यताओं के बावजूद फॉर्म भरते-भरते नाउम्मीदी के समंदर में डूबने को मजबूर थे. एक तरफ नए अभ्यर्थी खुशियां मना रहे थे तो वहीं दूसरी तरफ कुछ कथित शिक्षा माफिया इस पूरी नियुक्ति को मटियामेट और अपने पक्ष में करने की कोशिश में जुट गए. दिल्ली यूनिवर्सिटी टीचर्स के नाम से बने फेसबुक पेज पर विश्वविद्यालय से पहले से जुड़े हुए शिक्षक खुलेआम ‘गैंगस्टर’ बन जाने की धमकियां देने लगे. इसी गहमा-गहमी के बीच कई नये अभ्यर्थियों को नियुक्ति पत्र के साथ-साथ बी.ए. और बी.कॉम. के बच्चों को पढ़ाने के लिए क्लास शिड्यूल भी मिला. एक तरफ ये नव नियुक्त अध्यापक नियमित क्लासेस ले रहे थे तो दूसरी तरफ अकादमिक दुनिया की गंदी राजनीति अपना काम कर रही थी.

दिल्ली विश्वविद्यालय टीचर्स

बिना किसी पूर्व सूचना के NCWEB से हटे नाम
दो सप्ताह क्लास लेने के बाद संबंधित कॉलेज के इंचार्ज कई शिक्षकों को सूचना देते हैं कि आपका नाम तो NCWEB से हटा दिया गया है. इस बाबत शिक्षकों ने NCWEB की अध्यक्ष अंजू गुप्ता से मुलाकात और शिकायत की लेकिन निराश शिक्षकों की परेशानियों का निराकरण करने के बजाय वहां उनके नियुक्ति पत्र की मूल प्रति देखने के बहाने रख ली गई. कहें तो उनकी मर्जी के बगैर छीन ली गई. रक्षक ही भक्षक बन गए हैं. गिद्ध की तरह झपट्टा मारकर नियुक्ति पत्र छीनने की यह प्रक्रिया अनवरत जारी है. अकादमिक जगत के चूजे लगभग चुपचाप बैठे हैं. यही सब देखकर मुझे एक फिल्म का बहुचर्चित डायलॉग याद आता है- ‘गिद्ध चूजे पर झपटा और उठा ले गया; कहानी सच्ची तो लगती है लेकिन अच्छी नहीं लगती. गिद्ध पे पलटवार हुआ; कहानी सच्ची नहीं लगती लेकिन कसम से बड़ी अच्छी लगती है.’

कब होगा गिद्धों पर पलटवार?
अकादमिक गिद्धों पर पलटवार होगा या नहीं? कहानी बदलेगी या नहीं? कुछ कहा नहीं जा सकता लेकिन NCWEB में हो रही धांधली कुछ सवाल जरूर खड़े करती है. अगर नियुक्ति पत्र छीनना ही था तो दिया ही क्यों गया? क्या इस अकादमिक दुनिया में अभ्यर्थियों का कोई आत्मसम्मान नहीं? अगर उन्हें निकाला जा रहा है तो किस प्रक्रिया के तहत निकाला जा रहा है?
नाम न छापने की शर्त पर एक पीड़ित शिक्षक ने बताया कि उसे हटाकर जिन अभ्यर्थियों को नियुक्ति पत्र दिया गया वे एडहॉक पैनल लिस्ट में उससे 200-300 रैंक नीचे हैं लेकिन उनके पास सिफारिश है. अभ्यर्थी का सवाल है कि आखिर कहां गया कुलपति का टॉप-टू बॉटम फॉर्मूला? उसका कहना है कि, ‘पर्चा युग तो खत्म हो गया है लेकिन गिद्ध युग शुरू हो गया है’. इन अकादमिक गिद्धों के लिए ऐसे अभ्यर्थी ही सबसे आसान शिकार हैं. इन्हें ये बिना मिर्च-मसाले के ही हजम कर जाना चाहते हैं लेकिन वे लोग भी हार मानने वाले नहीं हैं और अंतिम दम तक लड़ने की तैयारी में हैं.

नोट- हमें यह रिपोर्ट व जानकारी सुधांशु ने भेजी है. वे दिल्ली विश्वविद्यालय के शोधछात्र हैं.