बतौर समाज गर्व करने वाली इन तस्वीरों और एक सार्थक पहल की कहानी…

बतौर समाज गर्व करने वाली इन तस्वीरों और एक सार्थक पहल की कहानी…

‘सबसे छोटे ताबूत सबसे भारी होते हैं – Smallest Coffins are the heaviest’

सरकारी आंकड़े के मुताबिक तीन जून से अब तक बिहार के मुजफ्फरपुर, पूर्वी चंपारण, शिवहर, समस्तीपुर, बेगूसराय समेत कई जिलों में चमकी बुखार यानी एक्यूट इन्सेफेलाइटिस सिंड्रोम से लगभग डेढ़ सौ बच्चों की मौत हो चुकी हैं.  गैर सरकारी आंकड़ों की बात करें तो ये नंबर ज्यादा हो सकते हैं. इस वक्त जब उन छोटे बच्चों और उनके मां-बाप का दर्द पूरा देश महसूस कर पा रहा है तो ऐसे में विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के बड़े हुक्मरानों के कान तक ना तो उन बच्चों की तड़प पहुंच पा रही है और ना ही उन बेबस मां-बाप की चीख.

मदद तो छोड़िए ये बच्चे और उनके मां-बाप इनकी तरफ से सहानुभूति के भी काबिल नहीं हैं. ऐसा इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि छोटी-छोटी बातों पर अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर अपनी बात रखने वाले इन नेताओं के हाथ मुजफ्फरपुर की त्रासदी पर कुछ भी लिखना भूल गए हैं या कहें कि जान-बूझकर चुप्पी साधे हुए हैं.

 


हमने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी, राजद नेता तेजस्वी यादव, तेज प्रताप यादव, बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे समेत कई नेताओं का सोशल मीडिया खंगाला लेकिन मुजफ्फरपुर त्रासदी पर इनकी तरफ से दुख जाहिर करते हुए एक पोस्ट नहीं दिखा. हां इनमें से कुछ नेताओं ने अस्पताल दौरे की फोटो जरूरी शेयर की है.

यह बात जगजाहिर है कि मुजफ्फरपुर एवं इसके आस-पास के जिलों में पिछले कई साल से चमकी बुखार ने आतंक मचा रखा है तो उस लिहाज से बिहार सरकार की तरफ से तैयारी होनी चाहिए थी. लोगों को बीमारी के बारे में जागरूक करने की और अस्पतालों में इस बीमारी से लड़ने की सभी सुविधाएं उपलब्ध करानी थी लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. हालांकि सोशल मीडिया पर हाय-तौबा मचने के बाद बिहार सरकार नींद से जरूर जागी और मुख्यमंत्री समेत सूबे के नेताओं ने अस्पताल का दौरा भी किया और खानापूर्ति के तौर पर मरे हुए बच्चों के परिजनों को बतौर मुआवजा चार लाख रुपए भी देने की घोषणा हो चुकी है.

बच्चों की मौतों ने जहां इन नेताओं और सरकार की पोल खोलकर रख दी है, वहीं समाज का एक बेहतर चेहरा देखने को मिला है, जो कि पिछले कुछ सालों से हम खोते जा रहे थे. बच्चों को बचाने के लिए फिलहाल देश की अलग-अलग जगह से लोग मदद के लिए आगे आए हैं. जमीन पर कई टीम कमाल का काम कर रही हैं, जो जिम्मेदारी जनता ने सरकार को दी थी, अब उस जिम्मेदारी को जनता खुद निभा रही है.

इंसानियत को बचाए रखने की कोशिश करते पत्रकार 

इस मुहिम को शुरू करने का श्रेय पत्रकार पुष्यमित्र को जाता है. बीते सालों की तरह इस बार भी जब मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार ने पांव पसारना शुरू किया तो पत्रकार पुष्यमित्र वहां रिपोर्टिंग के लिए गए थे. किसी मीडिया संस्थान के लिए अपनी जिम्मेदारी निभाने के साथ ही उन्हें ये एहसास हुआ कि हालात बहुत खराब हो चुके हैं और तैयारी कुछ भी नहीं है. 10 जून से उन्होंने सोशल मीडिया के जरिए लगातार चमकी बुखार और गांव के हालात के बारे में लिखना शुरू किया.

बच्चों की मौत का आंकड़ा बढ़ता जा रहा था,  सरकार और नेता अपनी दुनिया में कहीं गुम थे. पुष्यमित्र की पहल को आगे बढ़ाने का काम पत्रकार आनंद दत्ता ने किया. दोनों ने ही टीम बनाकर खुद ग्राउंड पर उतरना जरूरी समझा. जब वो ग्राउंड पर मदद के लिए उतरे तो सिर्फ 4-5 लोगों का साथ था. हालांकि इनकी कोशिश से मदद करनेवालों का हाथ बढ़ता गया और ज्यादा से ज्यादा पीड़ितों को सहायता पहुंचाने की कोशिश हो रही है.

इन दोनों के नेतृत्व में दो छोटी टीम मुजफ्फरपुर के अलग-अलग इलाकों में मदद के लिए उतरी. लेकिन चुनौती इतनी बड़ी थी कि सिर्फ इतने से हालत नहीं संभाला जा सकता था. पुष्यमित्र और आनंद ने लोगों से वालंटियरिंग के साथ आर्थिक सहायता की अपील की. इनकी अपील का असर कहें या शर्मिंदा कर देने वाली सरकारी व्यवस्था, लोग मदद के लिए आगे आएं. बच्चों को बचाने के लिए देश के अलग-अलग हिस्सों से लोगों ने बढ़-चढ़कर आर्थिक सहायता की. एक समय हालात ऐसे बने कि कुछ समय के लिए पैसे ना देने की भी अपील हुई.

इन पैसों से इन लोगों ने बीमारी से बचाव के लिए दवा, ग्लूकोज, सूती कपड़े, थर्मामीटर के अलावा अस्पताल में लोगों के पानी पीने और खाने तक का इंतजाम किया है. साथ ही लगातार सोशल मीडिया पर ये उन पैसों का ब्यौरा भी दे रहें ताकि इस मुहिम की पारदर्शिता बनी रहे. पुष्यमित्र और आंनद दत्ता के नेतृत्व में काम कर रहे सोमू आंनद, सत्यम कुमार झा, ऋषिकेश शर्मा जैसे लोग भी तारीफ के काबिले हैं क्योंकि इस बीमारी से लड़ने के लिए पैसों के अलावा जिस चीज की सबसे ज्यादा जरूरत थी, वो जागरूकता है. इसके बिना चमकी बुखार को रोका नहीं जा सकता है. इन्होंने अपनी मेहनत से कई बच्चों की जान बचा ली और कोशिश लगातार जारी है.

अब तक इनकी टीम ने कांटी प्रखंड के हरिदासपुर,छत्तरपट्टी, कल्याणपुर, हरौना, सेंदबारी, बरैठा, रसलपुर चौक, मुशहरी, मोरसंडी, मिर्जापुर, मानिकपुर, तिवारी टोला, पनसलबा, शहबाजपुर गांव, मीनापुर प्रखंड में हरिपुर, मोरसर, सिवायपट्टी गांव और मुसहरी प्रखंड के रघुनाथपुर जगदीश, डुमरी, कन्हौली समेत कई गांव में राहत सामग्री देने के साथ लोगों को जागरूक करने का काम कर दिया है.

मिथिला स्टूडेंट यूनियन ने भी संभाला मोर्चा

चमकी बुखार से बच्चों को बचाने के लिए जो दूसरी टीम जमीन पर काम कर ही है, वो है मिथिला स्टूडेंट यूनियन.  यह एक गैर राजनीतिक छात्र युवा संगठन है, जो रोजगार-पलायन, चीनी मिल, पेपर मिल जैसे मुद्दे को उठाती है. साथ ही राहत बचाव जैसे काम भी करती है. एमएसयू के राष्ट्रीय महासचिव आदित्य मोहन से जब हमने बात की तो उन्होंने बताया कि इस वक्त मुजफ्फरपुर के मीनापुर, कांटी, मुसहरी, श्रीकृष्ण मेडिकल अस्पताल (SKMCH), समस्तीपुर, रोसड़ा में 100 से अधिक लड़कों की आठ टीम काम कर रही है.  इनकी टीम 16 जून से ग्राउंड पर है. कांटी में इन्होंने मेडिकल कैम्प भी लगाया हुआ है.

आदित्य मोहन ने बताया कि मिथिला स्टूडेंट यूनियन 13 राज्यों में सक्रिय हैं. इन राज्यों से भी मुजफ्फरपुर के लिए राहत बचाव सामान की व्यवस्था की जा रही है. गांव-गांव घूमकर जरूरतमंदों को ग्लूकोज, थर्मामीटर, दवा, खाने के पैकेट देने के साथ ही इनकी टीम के लोग ग्रामीण भाषा में लोगों को चमकी बुखार के बारे में जागरूक कर रहे हैं. जो कि बेहद ही शानदार बात है.

मिथिला स्टूडेंट यूनियन की इस बेहतरीन कोशिश को देखिए:

बिहार अभी मरा नहीं है, खड़ा हो रहा है।रोजगार, शिक्षा हो या स्वास्थ, बिहार के लोग इसके लिए सरकार पर भरोसा नहीं कर सकती। बिहार के लोग हर मुसिबत का सामना खुद मिल जुलकर करते हैं। नेता-मंत्री लोग मुजफ्फरपुर का सिर्फ पर्यटन करने आए थे मगर बिहार के कुछ युवा और उनकी टीम मुजफ्फरपुर के गांव-गाँव घुमकर लोगों को चमकी बुखार के प्रति जागरूक कर रहे हैं और जरूरी दवाई और समान गरीब लोगों के बीच बांट रहे हैं। इस अभियान में मिथिला स्टूडेंट यूनियन (MSU) का काम बहुत सराहनीय है। एमएसयू के 8 टीमों में 100 से अधिक सेनानी राहत-बचाव व जागरूकता का काम कर रही है।

Geplaatst door Aapna Bihar op Donderdag 20 juni 2019

अलग-अलग टीमें लेकिन कमाल का कॉर्डिनेशन

इनके प्रयासों के बदौलत अब मन को शांत करने वाली बहुत सी तस्वीरें, वीडियो सामने आ रहे हैं. इनलोगों की मेहनत,जज्बे के अलावा एक चीज जो  कि काबिले-ए-तारीफ है, वह है इनकी प्लानिंग. अलग-अलग टीम होने के बाद भी इन लोगों ने राहत बचाव कार्य के लिए जो सामंजस्य  दिखाया है, उसकी तारीफ जरूर होनी चाहिए. किस भी गांव में जाने से पहले ये लोग मीटिंग करते हैं व्हाट्सग्रुप पर बातचीत करके ये फैसला करते हैं कि कौन सी टीम किस गांव में जाएगी. और इसी का नतीजा है कि ये कम संसाधनों के बावजूद ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंच पा रहे हैं.

दिख रहा है जन जागरूकता का असर

उत्तरी बिहार का सबसे बड़ा अस्पताल माना जाने वाला मुजफ्फरपुर का श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज व अस्पताल (SKMCH) इस वक्त यमराज का घर बना हुआ है. लेकिन जिस तरह से अलग-अलग टीम लोगों को जागरूक करने में लगी है, उसका असर कहीं ना कहीं दिख रहा है. ये लोग हर उस जगह जाकर लोगों को बीमारी के लक्षण, बचाव, क्या करें-ना करें के साथ ही साफ-सफाई का महत्व समझा रहे हैं. तीन जून से अब तक मौत की संख्या में जो लगातार बढ़ रही थी, वह कम हुई है. पहले जो बच्चे अस्पताल  आ रहे थे उनके बचने की उम्मीद कम थी लेकिन जागरूकता की वजह से अब स्थिति काबू में आती हुई प्रतीत हो रही है.

बिहार का मुजफ्फरपुर चमकी बुखार (इन्सेफेलाइटिस) का दंश झेल रहा है जबकि हमारे देश के प्रधानमंत्री, सरकारी सिस्टम, हमारे नेता और बड़े-बड़े मीडिया हाउस संवेदनहीनता का. देश के अलग-अलग हिस्सों से मिल रही मदद से बिहार इस दंश को तो झेल लेगा लेकिन सरकार और देश के जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों की तरफ से इस तरह की संवेदनहीनता जारी रही तो इसका शिकार हर बार कोई-कोई ना राज्य तो जरूरी बनेगा.