क्या लोकसभा चुनाव 2019 पूरी तरह ‘WhatsApp’ यूनिवर्सिटी की जमीन पर लड़ा जाएगा?

क्या लोकसभा चुनाव 2019 पूरी तरह ‘WhatsApp’ यूनिवर्सिटी की जमीन पर लड़ा जाएगा?

बसंत की दस्तक के साथ ही लोकसभा चुनाव 2019 की आधिकारिक घोषणा हो गई. देश के अलग-अलग हिस्सों के साथ ही अगर आप विशेष तौर पर बिहार में देखें तो आपकी नजरें खुद-ब-खुद सेमल के फूलों पर टिक जाएंगी. मनमोहक. कुछ इसी तरह चुनाव भी एक खूबसूरत फूल की ही तरह होते हैं. संक्षेप में कहें तो विशाल लोकतंत्र को खूबसूरत और मजबूत बनाने की पूरी प्रक्रिया. तो इस प्रक्रिया में सबसे पहले तो भारतीय जनता का स्वागत है. अब शुरू करते हैं चुनाव की बेहद जरूरी बात…

बिहार में तीन मार्च को एनडीए की रैली थी. पटना का वह हाल था कि आप चाहकर भी पोस्टरों से अपनी नजरें नहीं हटा सकते थे. क्या गली, क्या नुक्कड़, क्या लोगों के घर और क्या राजनेताओं पर स्वतंत्रता सेनानियों के प्रतिमाओं के चारों ओर बने हुए घेरे. ऐसा लग रहा था कि हम लोगों की दुनिया में नहीं, पोस्टरों की दुनिया में जी रहे हैं.  यह तो वास्तविक दुनिया का हाल था. अब आते हैं डिजिटल दुनिया पर तो डिजिटल दुनिया में जगह की कमी तो है नहीं. आप अपने व्हाट्सएप और फेसबुक पर अनगिनत ऐसे ग्रुप देखेंगे जिसमें यह लिखा रहता है  कि अगर सच्चे हो ……. तो 100 और को जोड़ें. रिक्त स्थान में धर्म,जाति, गांव, समाज या अपनी सुविधानुसार कुछ भी  रखा जाता है. और इसमें दिया गया संदेश जंगल की आग की तरह बड़ी संख्या में लोगों तक पहुंचता है.

2014 का लोकसभा चुनाव डिजिटल युग का एक तरह से पहला बड़ा चुनाव था 

हमारे देश में पूरे महीने सक्रिय व्हाट्सएप यूजर्स  की संख्या  200 मिलियन को पार कर चुकी है. 2014 का चुनाव डिजिटल माध्यम का पहला चुनाव था क्योंकि पहली बार किसी चुनाव में डिजिटल माध्यम और सोशल मीडिया का इस्तेमाल इतने बड़े स्तर पर किया गया था. तब व्हाट्सएप भारत की जनता के बीच अपने पैर पसार ही रही था. इस बार इसका दायरा व्यापक हो चुका है और हम सभी इसके सदुपयोग व दुरुपयोग को देख चुके हैं. हम यह देख चुके हैं कि मॉब लिंचिंग से लेकर बच्चा चोर बताने और दुनिया के किसी दूसरे कोने के वीडियो को देश के भीतर का बताकर शेयर करने में व्हाट्सएप ने आग में घी का काम किया है.

whatsApp’s role in Election

भारत में व्हाट्सएप के इस्तेमाल पर व्हाट्सएप का क्या कहना है?

तो फिर आते हैं लोकसभा चुनाव पर. आपको बता दें  कि व्हाट्सएप के कम्युनिकेशन प्रमुख कार्ल वुग यह स्वीकार कर चुके हैं कि भारत में कई चुनावों में राजनीतिक पार्टियों ने व्हाट्सएप का गलत इस्तेमाल किया था. चाहे सत्तारूढ़ दल द्वारा अपने काम की उपलब्धियों को बढ़ाचढ़ाकर बताने और तथ्यों को तोड़मरोड़ कर पेश करने का मामला हो या विपक्षी पार्टियों द्वारा सत्ता में वापस आने के लिए इस्तेमाल किए गए हथकंडे का हों. यानी पार्टियों ने हर तरह से व्हाट्सएप का इस्तेमाल करने वाले मतदाताओं को किसी किसी ग्रुप से जोड़ने की कोशिश की बल्कि बड़ी संख्या में उन्हें गलत जानकारियां देने पर भी अपना जोर लगाए रखा. एक होता है अनजाने में गलत जानकारी देना और दूसरा होता है जानबूझकर गलत जानकारी देना. चुनावी मौसम में जानबूझकर गलत जानकारी दी जाती है. यह कितना सत्य है, यह आप अपने व्हाट्सएप से आसानी से पता लगा सकते हैं.

व्हाट्सएप कोई प्रसारणकर्ता नहीं है

व्हाट्सएप का कहना है कि वह कोई प्रसारणकर्ता नहीं है, लेकिन व्हाट्सएप के कहने भर से क्या होता है? राजनीतिक पार्टियां इसका इस्तेमाल जिस स्तर तक संभव हो पाएगा, उस स्तर तक करेंगी.  भारत की दो बड़ी पार्टियां भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस स्मार्टफोन रखने वाले मतदाताओं तक हर अपडेट साझा करने के लिए व्हाट्सएप का इस्तेमाल कर रही है और आगे भी करेंगी. भाजपा ने 9,00,000 कार्यकर्ताओं को सेल फोन प्रमुख बनाया है वहीं मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस  भी ‘डिजिटल साथी’ की शुरुआत कर चुकी है. यह तो दो बड़ी पार्टियों के बारे में छोटी सी जानकारी है, अन्य राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियां भी अपने स्तर पर इस तरह की कई चीजें स्मार्ट फोन रखनेवाले मतदाताओं तक सीधे पहुंच के लिए कर चुकी है.   

क्यों किया जाता है व्हाट्सएप का प्रयोग ज्यादा 

आसानी से संदेश को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक कम इंटरनेट स्पीड में भेजे जाने की क्षमता ने व्हाट्सएप को लोगों के बीच लोकप्रियता दिलाई. अपनी सहूलियत के हिसाब से लोगों ने यहां ग्रुप्स बनाने शुरू किए और फिर आपस में जन्मदिन और त्योहारों के मुबारकवाद से लेकर, तस्वीरों के आदान-प्रदान शुरू हुए. फिर विचार कैसे पीछे छूट जाते. ऐसे मेंं जब राजनीति हमारी जिंदगी व जीवनशैली का निर्धारण करती हो और व्हाट्सएप पर यह भी शुरू हुआ. फिर आया झूठी खबरों को आगे बढ़ाने यानी फॉरवर्ड करने का चलन. देश का लोकसभा चुनाव भी ऐसे ही समय में हो रहा है, जब व्हाट्सएप लोगों को एक-दूसरे से आसानी से संपर्क कराने के मामले में सबसे आगे खड़ा है और चुनाव की सबसे बड़ी रणभूमि की तरह दिख रहा है.

सोशल मीडिया के गलत इस्तेमाल को लेकर इस क्षेत्र की दिग्गज कंपनियों ने क्या किया है…

चुनाव से पहले गूगल, फेसबुक और फेसबुक द्वारा ही चलाई जाने वाली कंपनी व्हाट्सएप ने पत्रकारों और आम लोगों को चुनाव से पहले फैक्ट चेकिंग यानी आपके पास सोशल मीडिया या इंटरनेट के जरिए जो भी जानकारी आ रही है, वह कितना सच है और कितना झूठ को लेकर जागरूक करने के लिए कई शहरों में सम्मेलन कर रही है. एक बार में आप कितने लोगों को मैसेज भेज सकते हैं और कितनी बार इसे फॉरवर्ड कर सकते हैं, इसे व्हाट्सएप सीमित कर चुका हैलेकिन यह भी पर्याप्त नहीं जान पड़ रहा है. आप देखेंगे कि जिनके पास समाचार की सत्यता परखने के लिए पर्याप्त साधन या जानकारी नहीं है, वह शायद ही किसी समाचार या संदेश पढ़ते समय यह सोच पाते हैं कि यह कितना सही है और कितना गलत है.