आदरणीय सुशील मोदी जी रोजगार नहीं दे सकते तो कम से कम बिहारियों को शर्मिंदा करने वाला बयान तो मत दीजिए

आदरणीय सुशील मोदी जी रोजगार नहीं दे सकते तो कम से कम बिहारियों को शर्मिंदा करने वाला बयान तो मत दीजिए

जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल-370 हटाने के बाद और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने के बाद जम्मू-कश्मीर छोड़ पूरे देश में जश्न का माहौल है. 5 अगस्त को जिन कश्मीरियों के राज्य से “स्टेटहुड’ का दर्जा छीन लिया गया है, उन कश्मीरियों (कश्मीरियों से मेरा मतलब वहां रहने वाले हर धर्म के लोग से हैं) को पांच दिन बाद भी नहीं पता कि उनके साथ या जम्मू-कश्मीर के साथ हुआ क्या. देश-विदेश से भी प्रतिक्रिया आ रही है लेकिन जिनके हित में बता कर ये काम किया गया है, उनकी कोई भी राय अब तक बाहर नहीं आ पाई है. वजह है अघोषित आपातकाल. आर्टिकल 370 हटाने के जश्न में आम तो आम बड़े-बड़े लोग भी अपनी खुशी नहीं छिपा पा रहे हैं.

सोशल मीडिया पर खुशी जाहिर करते हुए ये सारे लोग ये नहीं कह रहे हैं कि चलो उस अस्थाई वादे के हटने के बाद हम एक अच्छी शुरुआत करते हैं. या आओ हम एक-दूसरे को मेहमानवाजी का मौका दें और कई दशकों से जो दरार और दूरियां हैं उसे खत्म करने कोशिश करते हैं. बल्कि आर्टिकल 370 हटाने के मायने किसी के लिए वहां के लड़कियों को अपनी जागीर समझना है, किसी को कश्मीर में ससुराल बनाना है, किसी को वहां जमीन खरीदनी है, उत्तर प्रदेश भाजपा के एक विधायक जी के अनुसार अब लोगों को गोरी पत्नियां मिलेंगी तो वहीं बिहार के उपमुख्यमंत्री और भाजपा नेता श्री सुशील मोदी जी को बिहारियों के लिए रोजगार दिखने लगा है.

अपनी खुशी जाहिर करते हुए श्रीमान सोशल मीडिया पर लिखते हैं- ‘धारा 370 का हटना बिहार के लाखों युवाओं को रोजगार का अवसर देगा…’ इसके साथ इन्होंने 2-3 पेपर के आर्टिकल भी लगाएं है, जिनमें इनकी न्यूज़ छपी है. वहां भी इन्होंने यही कहा है कि ‘बिहारी कश्मीर के विकास में योगदान देंगे.’

मेरे सवाल आपसे ये हैं कि क्या बिहारी सिर्फ बाकी राज्य में योगदान देने के लिए बने हैं? क्या बिहारी इतने निकम्मे हैं कि उनसे अपने राज्य में काम नहीं होता? क्या बिहारियों में ये ताकत नहीं कि वो अवसर मिलने पर अपने राज्य के विकास में योगदान दे सकें? इतनी बड़ी संख्या में बिहारी अपना राज्य छोड़ दूसरे राज्यों में जाने के लिए मजबूर हैं, आपकी सरकार ने बिहार के विकास और बिहारियों के लिए क्या किया है? क्यों 2005 से ही आपकी पार्टी नीतीश कुमार की पार्टी के साथ सत्ता में है. (बीच का कुछ समय हटा लीजिए, जब आपकी पार्टी गठबंधन से अलग थी) फिर भी रोजगार का कोई अवसर नहीं मिला हम बिहारियों को? कभी जॉब तो कभी अच्छी शिक्षा तो कभी अच्छे इलाज के लिए बिहारी लगातार बाहर जा रहे हैं, लेकिन आपकी सरकार को कुछ फर्क पड़ा क्या? जरा सी भी शर्म आई?

जनसंख्या के हिसाब से देश का तीसरा बड़ा राज्य है आपका और मेरा बिहार. इतिहास और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है आपका और मेरा बिहार. अपनी मेहनती प्रवृति और प्रतिभा के लिए मशहूर है आपका और मेरा बिहार. लेकिन आप जैसे नेताओं की नीयत की वजह से ये सब बातें सिर्फ इतिहास होकर रह जाएंगी. बिहार की महानता के अध्याय में नया कुछ भी नहीं जुड़ रहा और ना आपलोगों की नीयत है. बिहार की हालत पुराने कैसेट जैसी होकर रह गई है, जो चल-चलकर घिस जाएगी और किसी दिन उसका रील टूट जाएगा. हम बिहारियों को अब शायद आदत सी हो गई है बेगानी शादी में अब्दुल्लाह दीवाना बनने की. और आपने अपने ट्वीट से वही किया है.

माननीय उपमुख्यमंत्री जी आपकी नजर देश-दुनिया और कश्मीर की खबरों पर है तो मैं ये मानकर चलती हूं कि आप बिहार से जुड़ी खबरों को भी देखते और पढ़ते होंगे. मैं ये भी मनाती हूं कि व्यस्तता के कारण आपकी नज़र से कुछ खबरें छूट जाती होंगी. एक ऐसी खबर का जिक्र मैं यहां कर रही हूं और उम्मीद करती हूं कि कभी इन सब मुद्दों पर भी आप अपने विचार रखेंगे.

तीन अगस्त को इकनॉमिक्स टाइम्स में एक रिपोर्ट छपी है. इस आर्टिकल में 2011 की जनगणना के मुताबिक ये बताया गया है कि देश में वो कौन-कौन से राज्य हैं जहां पर सबसे ज्यादा माइग्रेंट्स आते हैं. उनमें किस राज्य के लोगों की संख्या ज्यादा होती है. बात सबसे पहले दिल्ली और मुंबई की. मालिक आप सरकार हैं तो आपके पास रिकॉर्ड तो जरूर होगा लेकिन मैं फिर भी बता दूं कि जहां दिल्ली में 10 लाख बिहारी रहते हैं. वहीं मुंबई में 2.8 लाख. दिल्ली और मुंबई में पहला स्थान उत्तर प्रदेश को हासिल है. दिल्ली में बिहार दूसरे नंबर पर है, वहीं मुंबई में तीसरे नंबर पर. आप मन ही मन खुश हो सकते हैं कि चलो पहला स्थान तो यूपी वालों को मिला है, थोड़ी इज्जत बच जाएगी. लेकिन फिर वही बात है ना कि ‘बकरे की अम्मा कब तक खैर मनाएगी.’

रोजगार के नाम पर जिस तरह से आपलोगों का रवैया है, हम बिहारी कुछ दिन में उत्तर प्रदेश वालों से पहला स्थान हथिया लेंगे. वैसे भी तो हम बिहारियों पर आरोप लगते ही रहते हैं कि दूसरे राज्यों के लोगों का हक मार लेते हैं. तो एक और आरोप सही.

अब ऐसा भी नहीं है कि संसाधनों के मामले में हमारा राज्य एकदम ही खत्म है. करने दिखाने के लिए बहुत कुछ है लेकिन फिर बात वही आ जाती है नीयत की. अब उदाहरण के तौर पर मैं आपका ध्यान बिहार के कुछ टूरिस्ट प्लेस की ओर खींचना चाहूंगी. (जगह तो बहुत सारे हैं, मैं सिर्फ कुछ जगहों की बात कर रही हूं)  बिहार में टूरिज्म के लिए गया का महाबोधि मंदिर, विष्णुपद मंदिर, बोधि ट्री, नालंदा का नालंदा आर्किलॉजिकल म्यूजिम, नालांद मल्टीमीडिया म्यूजियम, मुंगेर का बिहार स्कूल ऑफ योग, वैशाली में विश्व शांति पैगोडा, अशोक स्तंभ, राज विशाल का घर, मधुबनी का नौलखा पैलेस, सासाराम का शेरशाह का मकबरा, भागलपुर में विक्रमशिला का खंडहर, सीतामढ़ी का जानकी मंदिर, पूर्वी चंपारण का केसरिया स्तूप जैसी तमाम चीजें मौजूद है.

लेकिन बिहार ही नहीं बिहार के बाहर तक लोगों इनके बारे में जाने इसके लिए क्या किया आपकी सरकार ने? क्या ये रोजगार के अवसर नहीं प्रदान कर सकते हैं? जहां तक मुझे पता है बिहार सरकार की तरफ से दिखावे के लिए ही सही टूरिज्म के नाम पर एक सोशल मीडिया हैंडल तक नहीं है.

यहां आपकी जानकारी के लिए मैं अर्बन एंड रीजनल प्लानिंग की एक रिपोर्ट ‘माइग्रेशन स्टडी ऑफ दिल्ली एंड एनसीआर’ का भी जिक्र करना चाहूंगी. इस रिपोर्ट में 91-2001 तक की डिटेल जानकारी दी हुई है. रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में माइग्रेट होकर आनेवाले 20 शहरों में से पांच बिहार के हैं. मधुबनी, दरभंगा, पटना, समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर इन पांच शहरों से 24.27 फीसदी लोग माईग्रेट होकर दिल्ली आते हैं.

आप बेशक कह सकते हैं कि उस वक्त हमारी सरकार नहीं थी, हम क्या कर सकते थे. लेकिन 2005 में आपकी सरकार आई और अब भी आप ही हैं. आपकी सरकार ने क्या किया? क्योंकि उसके बाद भी प्रतिशत वही है या बढ़ रहा है. क्यों नहीं आप और आपकी सरकार राज्य को विकास के रास्ते पर ले जाने की कोशिश करती, जहां आप शान से दूसरे राज्य के लोगों को नौकरी देने की बात करें. अगर ये नहीं होता तो बेगानी शादी में अब्दुल्लाह दीवान बनने की कोशिश मत कीजिए. अच्छे भविष्य की तलाश में लोग दिल्ली, कश्मीर या दूसरे राज्य आए हैं, अपने बयानबाजी से उनका भविष्य चौपट मत कीजिए. उम्मीद करती हूं आपको अब तक ये खबर तो मिल ही गई होगी कि कश्मीर से बिहारियों को निकल जाने को बोल दिया गया है.