पाटलिपुत्रा मैदान: कभी तेजस्वी भांजते थे बल्ला, आज है डंपिंग ग्राउंड और चरागाह

पाटलिपुत्रा मैदान: कभी तेजस्वी भांजते थे बल्ला, आज है डंपिंग ग्राउंड और चरागाह

ऐसा हमेशा से नहीं था कि बिहार की राजधानी के सबसे पॉश इलाकों में शुमार किए जाने वाले पाटलिपुत्रा कॉलोनी का ‘पाटलिपुत्रा मैदान’ कूड़े-कचड़े का डंपिंग ग्राउंड हो. एक समय ऐसा भी था जब पटना के सबसे शानदार क्रिकेट मैच इस मैदान पर खेले जाते थे. यहां के पिच और खिलाड़ियों की धूम पूरे बिहार में थी. लालू प्रसाद के बेटे भी यहां बल्ला भांजते थे. इतवार या किन्हीं छुट्टियों के रोज तो मैदान दिनभर क्रिकेट खिलाड़ियों से खचाखच भरा रहता लेकिन आज परिस्थितियां ‘भयंकर’ हैं. भयंकर पर ध्यान दीजिएगा. चारों तरफ कूड़ा-करकट है. मैदान में खुलेआम जानवर चर रहे हैं. कुछ नौजवान गांजा फूंक रहे हैं तो वहीं कोई गाड़ी (फोर व्हीलर और मोटरसाइकिल) भी सीख और सिखा रहा है.

हमने इसके रखरखाव के लिए जिम्मेदार पाटलिपुत्रा हाउसिंग सोसाइटी के अध्यक्ष पी.के.वर्मा से बात करने की कोशिश की तो पहली बार उन्होंने चंद मिनट का समय मांगकर फोन काटा. फिर खुद फोन किया और शहर से बाहर होने व अति व्यस्तता का हवाला देकर दो-तीन दिन बाद फोन करने को कहा. तीन दिन बाद फोन करने पर उन्होंने अगले रोज सुबह फोन करने को कहा. जब अगली रोज सुबह से फोन करना शुरू किया तो फिर फोन ही नहीं उठा. अब समझ में आ रहा है कि स्थितियां यूं ही भयंकर नहीं. भयंकर पर फिर से ध्यान दीजिएगा.

कूड़े-कचरे का अंबार और बहुत कुछ
कभी पाटलिपुत्रा के आसपास के स्कूली और किन्हीं प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले बच्चों के लिए खेलने-कूदने के काम में आने वाला एक मात्र ग्राउंड आज दुर्व्यस्था का पर्याय बन चुका है. एक तरफ कूड़े-कचरे का अंबार है तो वहीं दूसरी तरफ सरेआम लोग ड्राइविंग सीख रहे हैं. जानवरों का चरागाह तो है ही. इसी सिलसिले में जब पाटलिपुत्रा हाउसिंग सोसाइटी के सदस्य निर्मल कुमार द्विवेदी से बात होती है तो वे ‘पटना नगर निगम’ को ‘पटना नरक निगम’ का तमगा देते हैं. वे कहते हैं कि सोसाइटी के सभी पदाधिकारियों पर मैदान में कूड़ा-कचरा फेंकने के आरोप में प्राथमिकी दर्ज है. वे बोलते हैं कि इस सोसाइटी के प्रेसिडेंट पूरी तरह निगेटिव चलते हैं और गाल बजाने के अलावा कुछ नहीं जानते. वे इस बीच मैदान के रखरखाव के लिए मैदान के बाहर-बाहर बाउंड्री वॉल बनाने के डिसिजन का जिक्र करते हैं लेकिन वे इसकी पुष्टि नहीं करते.

कभी तेजस्वी यादव भांजते थे बल्ला
अब इस बात से तो सभी वाकिफ हैं कि लालू प्रसाद के बेटे सियासत में दाखिल होने से पहले क्रिकेट खेला करते थे. वे एक बार दिल्ली डेयरडेविल्स की टीम की ओर से आईपीएल में भी शिरकत कर चुके हैं. वे भी कभी इस मैदान के पिचों और नेट पर प्रैक्टिस किया करते थे लेकिन ऐसा लगता नहीं कि यह मैदान उन्हें अब भी याद है. हालांकि इस बीच उनकी पार्टी लगभग डेढ़ साल सत्ता में भी रही और वे सरकार में उपमुख्यमंत्री रहे. ऐसे में संदेह का लाभ तो उन्हें भी नहीं दिया जा सकता.

साभार: इंडियन एक्सप्रेस

मीना बाजार ने बिगाड़ी स्थिति
यहां की रौनक से वाकिफ लोग बताते हैं कि हमेशा से ऐसा नहीं था. साल 2006-07 से जो इस मैदान पर मीना बाजार लगना शुरू हुआ तो फिर हर साल लंबे समय तक उसके कब्जे में ही रहता चला गया. सरकार को भले ही इससे फौरी फायदा होता हो लेकिन मैदान का कबाड़ा हो गया. जगह-जगह बड़े-बड़े गड्ढे हो गए. तिसपर से यहां लगातार घूमने वाले जानवर किसी भी अच्छे पिच का कबाड़ा करने में सक्षम हैं. पाटलिपुत्रा गोलम्बर पर स्थित पाटलिपुत्रा कमिटी हॉल के गार्ड भोला से जब इस सिलसिले में बात होती है तो वे कहते हैं नगर निगम और कोऑपरेटिव के आपसी रगड़े ने पूरे इलाके को खराब कर दिया. धीरे-धीरे स्थितियां बिगड़ती चली गईं. कोई देखभाल करने वाला नहीं है. कोऑपरेटिव सोसाइटी की बिल्डिंग में शाम के वक्त टेबल टेनिस खेलने आए अंशुमन कहते हैं कि मैदान और आसपास की सड़क के मनचलों और लोफरों के अड्डे में तब्दील हो जाने के पीछे शासन-प्रशासन की लापरवाही तो बड़ी वजह है ही लेकिन आम जनता भी कम जिम्मेदार नहीं. वे मगध यूनिवर्सिटी से मनोविज्ञान में मास्टर्स कर रहे हैं.

भयंकर शब्द पर जाते-जाते फिर से गौर कीजिएगा. इस समय तो इस मैदान में कबड्डी, चिक्का और फुटबॉल भी खेलसकते हैं. गड्ढे में लटपटाकर गिरे तो बस माथा फूटेगा और पैर टूटेगा. नंगे पांव कबड्डी और चिक्का खेलने का मन हुआ तो बस पैर का तलवा कहीं-कहीं कट सकता है. बाद बाकी बिहार जिंदाबाद तो है ही. बर्दाश्त कीजिए और क्या कीजिएगा…