बिहार को मजबूत नेता की जरूरत है ना कि पिछलग्गू बनने से सूरत बदलेगी- प्रशांत किशोर

बिहार को मजबूत नेता की जरूरत है ना कि पिछलग्गू बनने से सूरत बदलेगी- प्रशांत किशोर

70 साल की उम्र नीतीश जी को जिसे अपने बेटा जैसा कहा उससे झूठ बोलना पड़े तो मैं बेटा होने के नाते उन्हें माफ कर रहा हूं. आप नीतीश जी की बात को सच मानिए

ऊपर लिखी ये लाइन कभी नीतीश कुमार के बेहद करीबी रहे और दाहिना हाथ माने जाने वाले राजनीतिक सलाहकार प्रशांत किशोर की हैं. एक प्रेस कांफ्रेस के जरिए नीतीश कुमार, बिहार की हालात और सीएए-एनआरसी जैसे तमाम मुद्दों पर अपनी बात रखी है. प्रशांत अपने इस प्रेस कांफ्रेंस के लिए फिलहाल ट्विटर पर नंबर वन पर ट्रेंड कर रहे हैं.

प्रशांत किशोर ने मीडिया के सामने साफ-साफ शब्दों में कहा है कि नीतीश कुमार को अब लालू यादव से खुद की तुलना करना बंद करके ये बताना होगा कि बिहार महाराष्ट्र, कर्नाटक और हरियाणा के मुकाबले कहां खड़ा है या अगले दस साल में कहां खड़ा रहेगा? हम लोग सुन सुन कर थक गए हैं कि लालू यादव के समय शिक्षा, स्वास्थ्य नहीं था हमने काम किया लेकिन उस काम का क्या फायदा कि अब भी लोग इलाज के लिए दिल्ली जाते हैं.

हम आपको बताते हैं कि अपने प्रेस कांफ्रेंस में प्रशांत किशोर ने क्या-क्या कहा?

नीतीश कुमार के विकास पर खड़े किए गंभीर सवाल

ये सच बात है कि नीतीश कुमार ने पिछले 15 साल में बिहार में काम किया है. इसमें कोई दो राय नहीं है. लेकिन उस विकास की गति और आयाम ऐसे नहीं रहे हैं, जिससे बिहार की हालत बदली हो. विकास के 20 आयाम को उठाकर देख लें तो बिहार 2005 में जहां था आज भी वहीं है. नीतीश जी ने शिक्षा में काम किया. बच्चों को स्कूल तक पहुंचाया, साइकिल और पोशाक बांटी, लेकिन एक अच्छी शिक्षा नहीं दे सके हैं.  भारत सरकार के शिक्षा इंडेक्स में बिहार अब भी देश का सबसे निचला राज्य है.

नीतीश जी की मेहनत से हर घर में बिजली पहुंची, लेकिन देश में जहां 900 केवी की खपत हैं, वहीं बिहार का हर परिवार केवल 202 केवी बिजली का उपभोग कर पाता है. लोग बल्ब और पंख चलाने के अलावा और कुछ करने की क्षमता नहीं है. सड़कें बनवाईं, लेकिन लोग गाड़ी खरीद सके इसकी व्यवस्था बनाई. साल 2005 में भी बिहार के लोगों की प्रति व्यक्ति आय 22वें स्थान पर था आज भी वहीं है. इस पर नीतीश जी या कोई भी खुले मंच पर बहस करना चाहें, तो आ जाएं. बिहार आज भी देश का सबसे गरीब राज्य है.

नीतीश जी को यहां गर्वनेंस पर कोई बोलने वाला नहीं हैं तो उन्होंने इसे अपना एकाधिकार बना लिया है कि जो किया वहीं बहुत किया. पिछली सरकारों में कुछ नहीं हुआ तो मैं जो थोड़ा बहुत कर रहा हूं उसे ही आप स्टैंडर्ड मान लीजिए. मुझे लगता है कि अब बिहार में वो समय आ गया है कि लोग ये जरूर जानना चाहते हैं कि आपने पिछले सरकारो के मुकाबले क्या किया? लेकिन उससे ज्यादा ये जानना चाहते हैं कि कि अगले दस साल में आप बिहार के लिए क्या कीजिएगा? लालू जी मुकाबले बिहार कहां खड़ा है ये जरूर बताइए लेकिन ये भी बताइए कि बिहार महाराष्ट्र, हरियाणा और कर्नाटक के मुकाबले कहां खड़ा है?

लोग ये जानना चाहते हैं कि मुंबई पूरी रात खुला रह सकता है तो पटना क्यों नहीं? नीतीश कुमार ने अच्छा काम किया बुरा काम किया. ये बहस और विवाद का मुद्दा हो सकता है. लेकिन इसमें कोई विवाद नहीं है कि उन्होंने 200 अच्छे विधायक नहीं दिए जो बिहार को आगे लेकर जाए. 15 साल की सो कॉल्ड तरक्की के बाद भी हम विकास के सारे आयामों में 22वें नंबर पर हैं.

गांधी और गोडसे एक साथ नहीं चल सकते हैं

नीतीश जी ने हमेशा ये कहा कि गांधी, जेपी और लोहिया की विचारधारा को कभी नहीं भूलाया जा सकता है. एक तरफ आप पूरे बिहार में गांधी जी का शिलापट लगवा रहे हैं, बच्चों को गांधी की विचारधारा से अवगत करा रहे हैं फिर उसी समय आप गोडसे के विचारधारा वालों लोगों के साथ कैसे खड़े हो सकते हैं? पार्टी के तौर पर, नेता के तौर पर आपको बताना होगा कि आप किस तरफ खड़े हैं?

मतभेद लोकसभा चुनाव के समय से ही चल रहा है

नीतीश कुमार से मेरा मतभेद एक महीने से नहीं बल्कि लोकसभा चुनाव के समय से ही चल रहा है. विवाद के दो कारण हैं. एक आइडियोलॉजी को लेकर है और दूसरा गठबंधन में नीतीश कुमार की पोजिशन को लेकर. नीतीश कुमार जी के लिए प्रश्न ये है कि आप गांधी और गोडसे को एक साथ लेकर कैसे चल सकते हैं? नीतीश कुमार जी के लिए प्रश्न ये है कि आप सशक्त नेता बनना चाहते हैं या पिछलगू बनना चाहते हैं? जिस नीतीश कुमार को मैं जानता हूं वो हमेशा गांधी के साथ खड़े रहे लेकिन अब विवाद की वजह ही ये है कि अब वो गोडसे जिंदाबाद बोलने वाले लोगों के साथ खड़े हैं.

नीतीश कुमार का बीजेपी से आज का रिश्ता नही ंहै. वो 2004 से बीजेपी के साथ हैं. लेकिन 2004 में वो बीजेपी के साथ जिस तरह से थे और  आज जिस तरह से हैं, उसमें जमीन-आसमान का फर्क है. मेरे लिए 2014 के नीतीश कुमार धूल-धूसरित, चुनाव हारे हुए, 2 सांसद के नेता उनका ज्यादा सम्मान है. वो बिहार के शान थे.आज 16 सांसद लेकर कोई गुजरात का नेता उन्हें बताएं कि लीडर बन रहिएगा मेरे लिए वो अच्छी बात नहीं है. बिहार का मुख्यमंत्री 10 करोड़ लोगों की आन और शान है. किसी का मैनेजर नहीं जो दूसरे पार्टी का नेता डिप्यूट करेंगे कि वो उनके नेता होंगे. वो अधिकार सिर्फ बिहार की जनता का है. हमें वो नेता चाहिए जो सशक्त हो और समृद्धि भारत-बिहार की बात करने के लिए किसी का पिछलग्गू ना बने.

नीतीश कुमार मेरे लिए पिता तुल्य हैं

नीतीश जी से मेरे संबंध विशुद्ध राजनीतिक संबंध नहीं था. मैं 2014 के नंवबर में पहली बार उनसे मिला था. उसके बाद से उन्होंने मुझे हमेशा अपने बेटे जैसा रखा है और कई मायनों में मैं उन्हें पिता तुल्य मानता हूं. जो लोग मुझे या नीतीश जी को जानते हैं उन्हें ये बात अच्छे से पता है. उन्होंने मुझे पार्टी में रखा या निकाला ये उनका एकाधिकार है. मैं उस पर टीका-टिप्पणी नहीं करना चाहता हूं. मैं पहले भी उनका सम्मान करता था और आज भी उनका सम्मान करता हूं.

बिहार की तरक्की के लिए ‘बिहार की बात’ कैंपेन होगा शुरू 

प्रेस कांफ्रेंस में प्रशांत किशोर ने बताया कि वो 20 फरवरी से एक नया कार्यक्रम ‘बात बिहार की’ शुरू करने जा रहा हैं. इस कार्यक्रम के जरिए वो अगले 100 दिन बिहार के हर जिलों के युवाओं से जुड़ेंगे और अगले दस साल में बिहार देश के 10 अग्रणी राज्यों कैसे शामिल हो इस पर काम करेंगे. बिहार को अब वो चलाएगा जिसके पास दस साल का ब्लू प्रिंट होगा या जिसके पास सपना हो. अगर नीतीश कुमार या सुशील मोदी इस कैंपेन का नेतृत्व करना चाहते हैं तो उनका स्वागत है.

मीडिया के सवालों का जवाब

सवाल- बीजेपी के साथ काम करने के बाद आज आप अलग हो गएं?

जवाब- बीजेपी के साथ एकबार मैंने 2014 में काम किया था. साल 2015 में आईपैक कंपनी की स्थापना हुई, जिसके साथ मैं काम करता हूं. 2015 में आईपैक का पहला कैंपेन बिहार में था और बीजेपी के खिलाफ था. दूसरा कैंपेन पंजाब में था जहां अकाली दल और बीजेपी की सरकार थी, वहां भी बीजेपी के खिलाफ कैंपेन था. उसके बाद आईपैक ने उत्तर प्रदेश में काम किया, वहां भी बीजेपी के खिलाफ. उसके बाद आईपैक ने आंध्र प्रदेश में कैंपेन किया, वहां भी कैंपेन बीजेपी के खिलाफ था. आप मुझे बताएं कि 2014 के बाद आईपैक ने कहा बीजेपी के साथ काम किया है? मैं आपको बता दूं कि मैंने हमेशा ही बीजेपी के खिलाफ काम किया है. 2015 में बीजेपी से अलग होने के बाद मैंने हमेशा ही जो बीजेपी के खिलाफ है उसके साथ काम किया है.

सवाल- नीतीश जी ने कहा कि उन्होंने आपको अमित शाह के कहने पर पार्टी में रखा.

जवाब- 70 साल की उम्र नीतीश जी को जिसे अपने बेटे जैसा कहा उससे झूठ बोलना पड़े तो मैं बेटा होने के नाते उन्हें माफ कर रहा हूं. आप नीतीश जी की बात को सच मानिए.

सवाल- जदयू-बीजेपी से अलग हो जाए तो क्या आप जदयू के साथ फिर से आएंगे?

जवाब- मैं पार्टी की बात ही नहीं कर रहा. मैं तो नीतीश कुमार के साथ सुशील मोदी को भी न्यौता दे रहा हूं कि जो बिहार के भलाई के लिए काम करना चाहता है वो आगे आए और मेरे इस कैंपन का नेतृत्व करें.

सवाल- क्या आपका एजेंडा बीजेपी को सारे राज्यों से उखाड़ फेंकने का है?

जवाब- मेरा एजेंडा ये है कि बेहतर लोगों को साथ जोड़ना. नकारात्मक मेरा एजेंडा नहीं है. अगर आपने मेरा कैंपेन कभी देखा है तो आपको पता होगा कि मैं निगेटिव कैंपेन नहीं करता हूं. मेरे कैंपेन में 3 लाख युवा हैं, उसमें से 30 प्रतिशत बीजेपी के सक्रिय कार्यकर्ता हैं. मुझे किसी से गुरेज नहीं है. बशर्त आप काम करना चाहते हैं.

सवाल- क्या आप आप मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं?

जवाब- मैंने डेढ़ साल पहले अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की है. ना मेरे पास दल है,ना कार्यकर्ता है, ना मैं किसी बड़े बाप का बेटा हूं और ना ही मैं ऊंची जाति से आता हूं फिर मैं ये कैसे सोच सकता हूं?

सवाल- जदयू में घर वापसी होगी?

जवाब- नीतीश जी का घर मेरा ही घर है तो घर वापसी का क्या बात है. आप जितनी बार मिले हैं मुझसे नीतीश जी के घर पर ही मिले हैं. तो घर वापसी जैसा कुछ नहीं है.

सवाल- शराबबंदी को कैसे देखते हैं?

जवाब- बिहार में शराबबंदी का असर पॉजिटिव है या निगेटिव ये आप तब बता सकते हैं जब शराब बंद हो. आपलोग यहां सारे बैठे हैं  आप बताएं शराब बंद हो गई है? तो जब बंद नहीं हुई तो उसका असर और कुअसर कैसे बताया जाए.

सवाल- सीएए-एनआरसी और एनपीआर पर क्या कहना चाहते हैं?

जवाब- मैं आपको फिर से बता रहा हूं कि बिहार सीएए-एनआरसी, एनपीआर लागू नहीं होगा. मैं शुक्रगुजार हूं कि नीतीश कुमार जीने भी ये बात कह दी है और मुझे लगता है कि वो अपने इस बात पर कायम रहेंगे. मुख्यमंत्री जी ने भी कहा है कि सीएए पर कोर्ट के फैसला को आने दीजिए. जिस दिन बिहार में सीएए के तहत एक भी इंसान को नागरिकता दे दी जाएगी, उस दिन मैं मानूंगा कि सीएए लागू है. उससे पहले सीएए यहां लागू नहीं है. मेरी निजी राय है कि सीएए-एनआरसी और एनपीआर इस कॉम्बिनेशन में बिहार में लागू नहीं होगा. अगर लागू हुआ तो राजनीतिक एक्टिविस्ट के तौर पर मैं इसके विरोध में खड़ा हूं.