पाकिस्तान के संविधान की वो पांच अच्छी बातें, जो हमें पता होनी चाहिए

पाकिस्तान के संविधान की वो पांच अच्छी बातें, जो हमें पता होनी चाहिए

गांधी से मोदी तक रामराज्य भारत का आदर्श रहा है. लेकिन हम सबके लिए पाकिस्तान इस आदर्श के ठीक उल्टा बना हुआ है. रामराज्य जहां सब अच्छा है और पाकिस्तान मतलब जहां सब बुरा है। भारत में आजकल एक ट्रेंड बना हुआ है, जहां रामराज्य के आदर्शों पर सवाल उठाने वालों को पाकिस्तान जाने की सलाह दे दी जाती है।

आज पाकिस्तान अपनी 72वीं यौम-ए-आज़ादी मना रहा है. ऐसे में वहाँ के संविधान-क़ानून और हुकूमत से जुड़ी पाँच ख़ास बातें जो आप यहाँ बैठे-बैठे जान सकते हैं.

महिला आरक्षण

बीते 25 जुलाई को हुए नेशनल असेम्बली के चुनावों में क्रिकेटर इमरान ख़ान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी है. 342 सदस्यों वाली संसद में 272 सीटें सीधे चुनाव द्वारा भरी जाती हैं जबकि 70 सीटें समानुपातिक प्रतिनिधित्व के लिए सुरक्षित रहती हैं. हर पार्टी को चुनाव में मिले वोट के अनुपात में कुछ सांसद नामित करके भेजने का अधिकार होता है. पाकिस्तान में नियम है कि सीधे निर्वाचन में हासिल चार सीटों पर समानुपातिक की एक सीट आवंटित होती है. ऐसे में मियाँ इमरान ख़ान नियाज़ी को सीधे चुनाव में हासिल 116 सीटों के हिसाब से समानुपातिक प्रतिनिधित्व में 29 सांसद और मिलेंगे. दिलचस्प है कि ये सत्तर सांसद दो ही तबके से हो सकते हैं – अल्पसंख्यक और महिला। 60 महिला और दस अल्पसंख्यक. हमने चाहे अब तक महिला आरक्षण विधेयक को लटका कर रखा हो लेकिन हमारे दिलों में हमेशा एक ख़राब जगह की छाप रखने वाले पाकिस्तान ने इसे एक तरह से लागू कर लिया है.

आया राम गया राम की सियासत को झटका

हमारे देश में आया राम गया राम की सियासत होती रही है. इससे बचने के लिए दल-बदल विरोधी क़ानून बना कर हमने इस बात की व्यवस्था की है कि किसी भी पार्टी के सांसद-विधायक अपनी पार्टी छोड़ किसी और दल में शामिल होते हैं तो वे सांसदी-विधायकी से अयोग्य हो जाएँगे. लेकिन हमने निर्दलीय सांसदों-विधायकों के बारे में कोई नियम नहीं बनाया. ऐसे में ये जीतते हैं और त्रिशंकु जनमत की स्थिति में सरकारों से जम कर लाभ उठाते हैं. कुछ छोटे राज्यों में तो इनका गुट बार-बार तोल-मोल करते हुए सरकारें बनवाता और गिरवाता है. निर्दलीय होने से इन्हें एक तरह से इस बता की छूट मिल जाती है कि ये बार-बार अपनी निष्ठा बदलते रहें और सरकार की स्थिरता को ख़तरा पैदा करें. पाकिस्तान में ऐसा नहीं है ज़नाब ! वहाँ चुनाव में जितने के कुछ दिनों बाद की एक समय सीमा दी जाती है ताकि निर्दलीय सांसद अपनी पसन्द की एक पार्टी चुन लें. क़ानूनन अगले पाँच सालों तक उन्हें उसी पार्टी का साथ देना होता है.

महिलाओं की भागीदारी का महत्व

महिलाओं से जुड़ा पाकिस्तान में एक और दिलचस्प प्रावधान है. चुनाव के दौरान अगर किसी निर्वाचन क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी दस फ़ीसद से कम पाई गई तो उस सीट के इलेक्शन को रद्द कर दिया जाएगा. हमारे यहाँ ऐसा कोई कानूनी प्रावधान नहीं है.

जीत का सर्टिफिकेट आसानी से नहीं मिलता

भारत में चुनाव जीतने के साथ ही उम्मीदवार को निर्वाचन अधिकारी से जीत का प्रमाणपत्र पा जाता है और शपथग्रहण से पहले ही जनप्रतिनिधि हो जाता है. पाकिस्तान में ऐसा नहीं है. वहाँ चुनाव जीतने के बाद चुनाव आयोग द्वारा उम्मीदवार ने चुनाव के दौरान किए गए व्यावहार ख़र्चे की जाँच की जाती है. सब सही पाए जाने पर ही उम्मीदवार के निर्वाचन को वैध ठहराया जाता है.

पीएम का चुनाव सभी दलों के सांसद करते हैं

हमारे देश में जनमत आते ही, जब एक पार्टी सरकार बनाने में सक्षम दिखाई देने लगती है, उसके नेता को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई जाती है. साथ में मंत्री शपथ लेते हैं. और फिर नई-नवेली सरकार अपनी सुविधा अनुसार संसद का सत्र बुलाती है जिसमें ज़रूरत पड़ने पर फ्लोर टेस्ट होता है और चुने हुए सदस्य सांसद पद का शपथग्रहण करते हैं. पाकिस्तान में ऐसा नहीं है. वहाँ चुनाव के बाद सीधे सरकार नहीं बनती. पहले संसद का सत्र आहूत होता है. तब उसमें सभी चुने हुए लोग पुराने स्पीकर से शपथ लेते हैं. उसके बाद नए अध्यक्ष का चुनाव होता है और फिर संसद के निचले सदन का नया अध्यक्ष प्रधानमंत्री का चुनाव करवाता है. ये हमारे यहाँ की तरह बिल्कुल नहीं होता कि पार्टी के सांसद बैठे और अपना नेता चुन लिया. फिर वही नेता पीएम बनेगा. वहाँ पीएम का चुनाव संसद के भीतर सभी पार्टियों के सांसद मिल कर करते हैं.

हमारे यहाँ ऐसी ही सिफ़ारिश बाबा साहेब डॉ0 भीमराव आम्बेडकर ने भी की थी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. कुल मिलाकर कहें तो हमारे यहाँ सरकार संसद बुलाती है और पाकिस्तान में संसद से सरकार पैदा होती है. संसदीय व्यवस्था के लिए पाकिस्तान द्वारा अपनाए प्रधानमंत्री चुनने की प्रक्रिया हमारे यहाँ से ज़्यादा स्वस्थ मालूम पड़ती है.

द बिहार मेल के लिए ये लेख अंकित दूबे ने भेजा है. यह लेखक के अपने विचार हैं. अंकित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के भाषा साहित्य एवं संस्कृति अध्ययन संस्थान के पूर्व छात्र हैं.