देर से छत पर बैठा आसमान देख रहा हूँ। ऐसा भरा हुआ आसमान और ऐसी शांति, एकबारगी तो छलावा होने…
मैं जश्ने रेख़्ता में था। शाम सात बजे के आसपास घर से फोन आया कि कहाँ हो दिल्ली में दंगे…
हमें दूसरों के लिए जगह बनानी ही होगी। यह एक चक्र है— आप चलते हैं और मंजिल तक पहुँचते हैं।…
मैं नहीं जानता कि इस खत को कौन पढ़ेगा. पर मैं चाहता हूं कि जो भी पढ़े वो इस खत…